छत्तीसगढ़ का शिमला कहे जाने वाले मैनपाट में बाक्साइट खदान से यहां की जलवायु और प्राकृतिक संपदा को बड़ा नुकसान हुआ है। यहां से निकली घुनघुट्टा नदी के उद्गम क्षेत्र में तीन बाक्साइट माइंस शुरू होने से उद्गम गर्मी आते ही नदी सूख रही है। यहां पहले केसरा में बालको ने माइंस शुरू किया था, जो अभी वर्तमान में बंद है। इसके बाद नया केसरा में सीएमडीसी की खदान अभी चल रही है। वहीं अब पथराई में भी सीएमडीसी की माइंस शुरू हो रही है। यहां नदी के उद्गम स्थल के चार किलोमीटर रेंज में तीन माइंस से उद्गम इलाके में स्थित 10 से अधिक छोटे-बड़े ढोंढ़ी भी अब सूख चुके हैं।
इससे नदी का अस्तित्व खतरे में है। अंबिकापुर शहर की आबादी के लिए अमृत योजना इसी नदी के जल पर आश्रित है। वहीं इसे नदी में बने घुनघुट्टा डेम से 40 से अधिक गांव के किसान अपने खेतों को नहर के माध्यम से सिंचाई करते हैं। मैनपाट में 90 के दशक में पहली बार बाक्साइट माइंस शुरू हुआ था। 3 दशक से अधिक समय से यहां खनन चल रहा है। इससे यहां का पर्यावरण प्रभावित हुआ है। नतीजा यह है कि यहां का तापमान जो गर्मी के दिनों में रात में चार डिग्री सेल्सियस तक रहता था, अब 20 डिग्री के करीब पहुंच गया है।
मानसूनी बादल पहाड़ों से टकराकर सरगुजा, जशपुर, धरमजयगढ़ आदि क्षेत्रों में भारी बारिश कराते थे, लेकिन पहाड़ों की खुदाई से दुष्प्रभाव पड़ रहा है। पहाड़ों में दुर्लभ जड़ी-बूटियां और वनोत्पाद भी प्राप्त होते हैं। खुदाई से ये सभी नष्ट होने की कगार पर हैं। पहाड़ों में जंगल होने की वजह से ये क्षेत्र वर्षा काल में जल ग्रहण कर भू-गर्भीय जलस्तर को बढ़ाते हैं, लेकिन पहाड़ों की खुदाई से इस पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है। टाऊ की खेती और रकबा 60 प्रतिशत तक कम हो गया है। मैनपाट के पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने कलेक्टर को इससे अवगत कराया है।
झरने सूखे, बढ़ी धूल, जानवर भागे और पक्षी नहीं देखते
खनन के बाद झरनों में पानी कम हो गया है। गर्मियों में झरनों का पानी सूख जाता है। मेहता प्वाइंट में हमेशा धूल के गुबार उड़ते रहते हैं। हाथियों का आश्रय स्थल नष्ट होने से ये लेमरू और कोरबा के जंगलों की ओर रुख कर गए हैं। खनन में ब्लास्टिंग और बारूद के धुएं से तमाम किस्म के पक्षी समाप्त हो गए।
अब ज्यादा नहीं हिलती दलदली क्षेत्र की जमीन, दायरा सिमटा
मैनपाट में टाइगर प्वाइंट, फिश प्वाइंट, दलदली के झरनों में हर मौसम में भरपूर पानी होता था। दलदली मैनपाट का एक दुर्लभ पर्यटन स्थल था। यहां की भूमि का एक बड़ा हिस्सा हिलता रहता था। खनन के बाद भूमि के नीचे की परत सूखने से दलदली का क्षेत्र का ज्यादातर हिस्सा सिमट गया है।
रायगढ़ के जंगलों से पहुंचते थे शेर लेकिन अब ऐसा नजारा नहीं
मैनपाट क्षेत्र में शेर भालू, चीता, तेंदुआ, नील गाय, जंगली सूअर, कोटरी, सांभर, हिरणों का झुंड़ स्वच्छंद विचरण करता था। रायगढ़ के जंगलों से शेर आकर यहां भोजन और विश्राम करते थे। हाथियों का आश्रय स्थल और आने-जाने का (विचरण) क्षेत्र प्रजनन क्षेत्र रहा है, लेकिन अब ऐसा नहीं रहा।