कबीरधाम जिले का भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़ की पहचान माना जाता है, लेकिन इस बार मंदिर की दीवारों से पानी रिस रहा है। पिछले एक-डेढ़ माह में जब भी भारी वर्षा हुई है, दीवारें इतनी रिसने लगी हैं कि पानी गर्भगृह तक भरने लगता है। यही नहीं, मंदिर के शीर्ष तक काई जमने लगी है, जिससे दीवारों पर बनी छोटी कलाकृतियां नजर नहीं आ रही हैं।
मंदिर में सेवारत कर्मचारियों ने बताया कि 7 साल पहले मंदिर का केमिकल ट्रीटमेंट हुआ था। इस साल इसके लिए सवा करोड़ मंजूर किए गए लेकिन अभी इसके लिए केमिकल ट्रीटमेंट शुरू नहीं किया जा सका है। गौरतलब है, प्रदेश की प्राचीन धरोहरों में से एक, भोरमदेव मंदिर का संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के अधीन है। बता दें कि 7वीं से 11वीं शताब्दी के मध्य मंदिर का निर्माण तत्कालीन नागवंशी राजाओं द्वारा करवाया गया था।
जोड़ाई मटेरियल का क्षरण
जानकारों के मुताबिक मंदिर निर्माण के वक्त पत्थरों की जोड़ाई में इस्तेमाल मटेरियल का क्षरण हो रहा है। पानी का रिसाव फाउंडेशन तक पहुंचा तो मंदिर के टिल्ट होने (झुकने) का भी खतरा है।
छत्तीसगढ़ का खजुराहो
7वीं से 11वीं शताब्दी के मध्य मंदिर का निर्माण तत्कालीन नागवंशी राजाओं ने करवाया था। निर्माण नागर शैली पर है, जो भगवान शिव को समर्पित है। इसे छत्तीसगढ़ का खुजराहो भी कहते हैं।