यह त्यौहार नरक चौदस या नर्क चतुर्दशी या नर्का पूजा के नाम से भी प्रसिद्ध है, मान्यता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल तेल लगाकर अपामार्ग (चिचड़ी) की पत्तियाँ जल में डालकर स्नान करनें से नरक से मुक्ति मिलती है, विधि-विधान से पूजा करनें वाले व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो स्वर्ग को प्राप्त करते हैं।
शाम को दीपदान की प्रथा है जिसे यमराज के लिए किया जाता है, दीपावली को एक दिन का पर्व कहना न्योचित नहीं होगा, इस पर्व का जो महत्व और महात्मय है उस दृष्टि से भी यह काफी महत्वपूर्ण पर्व व हिन्दुओं का त्यौहार है, यह पांच पर्वों की श्रृंखला के मध्य में रहनें वाला त्यौहार है जैसे मंत्री समुदाय के बीच राजा।
दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस फिर नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली फिर दीपावली और गोधन पूजा, भाईदूज।
इस त्योहार को मनानें का मुख्य उद्देश्य घर में उजाला और घर के हर कोनें को प्रकाशित करना है, कहा जाता है कि दीपावली के दिन भगवान श्री राम चन्द्र जी चौदह वर्ष का वनवास पूरा कर अयोध्या आये थे तब अयोध्या वासियों ने अपनी खुशी के दिए जलाकर उत्सव मनाया व भगवान श्री रामचन्द्र माता जानकी व लक्ष्मण का स्वागत किया।
