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क्या होता है विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव जो TMC सांसद के खिलाफ ला सकती है सरकार

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इस साल का संसद (Parliament) का मानसून सत्र अब तक काफी हंगामेदार रहा है. बहुत सी घटनाओं के चलते सरकार और विपक्ष को एक दूसरे को घेरने का मौका मिला है. हाल ही में कांग्रेस और कम्युनिस्ट सांसदों ने स्वास्थ्य राज्यमंत्री डॉ भारती प्रवीण पंवार के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव (Privilege Motion) ला रही है तो वहीं सत्तारूढ़ पार्टी टीएमसी (TMC) के सांसद शांतुनु सेन के खिलाफ विशेषाधिकार प्रस्ताव लाने की बात कर रही है. आइए विस्तार से जानते हैं कि यह विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव क्या है और इसकी जरूरत कब और क्यों पड़ती है.

क्या हैं ये मामले
कांग्रेस और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने स्वास्थ्य राज्य मंत्री भारतीय प्रवीण पंवार के खिलाफ भारत में ऑक्सीजन की कमी की वजह से कोविड-19 के मरीजों की मौत के गलत आंकड़े पेश कर सदन को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव लाने का फैसला किया तो वहीं सत्तारूढ़ पार्टी पेगासस मामले में बयान देते समय सूचना तकनीकी मंत्री अश्विनी वैष्णव के प्रति किए गए टीएमसी के सांसद शांतुनु सेन के दुर्व्यवहार के खिलाफ विशेषाधिकार प्रस्ताव लाने की बात कर रही है.

क्या होता है विशेषाधिकार हनन
सभी सांसदों को कई तरह के निजी, व्यक्तिगत और सामूहिक अधिकार और संरक्षण मिले हैं जिससे वे अपने दायित्वों के निर्वाहन कारगर तरीके से कर सकें. जब कभी ऐसी स्थिति हो कि इन अधिकारों और संरक्षणों का किसी लोकसभा और राज्यसभा के सांसद के द्वारा उल्लंघन किया जाए तो उससे विशेषाधिकार हनन की स्थिति कहते हैं जो संसद के कानून के तहत दंडनीय अपराध माना जाता है.

क्या है विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव
किसी भी सदन का कोई सदस्य एक प्रस्ताव के रूप में नोटिस देकर किसी ऐसे सदस्य के खिलाफ ला सकता है जिस वह विशेषाधिकार हनन का दोषी मानता है. कानून के अनुसार, दोनों ही सदन को किसी भी पदाधिकारी या प्रतिष्ठित व्यक्ति को अवमानना (विशेषाधिकार हनन सहित) के कार्य पर सजा देने का अधिकार है.

सदन के अध्यक्ष की भूमिका
लोकसभा में स्पीकर और राज्यसभा में राज्यसभा सभापति सबसे पहले विशेषाधिकार हनन के प्रस्तावों पर विचार करते हैं. वे या तो इसे स्वीकार करने का खुद ही फैसला करते हैं या फिर उसे संसद की विशेषाधिकार समिति के हवाले कर देते हैं. लोकसभा के बीसवें अध्याय के नियम 222 और राज्यसभा के 16 अध्याय के नियम 187 के तहत सदन के अध्यक्ष द्वारा स्वीकृत होने के बाद सदस्य को अपनी ओर से स्पष्टीकरण देने का अवसर दिया जाता है.

विशेषाधिकार समिति
यह प्रस्ताव हाल में ही हुई घटना के लिए लाया जा सकता है जिसमें सदन के हस्तक्षेप की आवश्कता हो. इसे 10 बजे से पहले लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा सभापति के समक्ष रखा जाना होता है. लोकसभा का अध्यक्ष संसद की हर पार्टी के सदस्यों को मिलाकर 15 सदस्यीय समिति बनाते हैं जिसकी रिपोर्ट सदन के पटल पर रखी जाती है. अध्यक्ष इस पर बहस की अनुमति भी दे सकते हैं. जिसके बाद प्रस्ताव को पारित किया जा सकता है. फिलहाल बीजेपी सांसद सुनील कुमार सिंह लोकसभा की विशेषाधिकार समिति के अध्यक्ष हैं. राज्यसभा में उपसभापति इसके अध्यक्ष होते हैं जिसके केवल 10 सदस्य होते हैं.

आमतौर पर विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव संसद में पास नहीं होते. बहुत कम मामलों में सजा की अनुशंसा की गई है.  1978 में इंदिरागांधी के खिलाफ विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव पास किया गया था उस समय गृहमंत्री चरण सिंह ने इस प्रस्ताव को आपातकाल के अत्याचारों की जांच कर रहे जस्टिस शाह कमीशन के अवलोकनों के आधार पर सदन में रखा था. उस समय तभी चुनाव जीत कर संसद में आईं श्रीमती गांधी को सदन से बर्खास्त कर दिया गया था.