चंडीगढ़. पंजाब कांग्रेस के नवनियुक्त अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू (Punjab Congress President Navjot Singh Sidhu) के साथ 80 में से 58 विधायकों के खड़े होने की एक तस्वीर से साफ हो गया है कि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (Chief Minister Captain Amarinder Singh) के पक्षधर बने रहे कांग्रेस के सांसद प्रताप सिंह बाजवा, मनीष तिवारी, रवनीत बिट्टू, गुरजीत औजला व अन्य जनभावनाओं को पढ़ने में विफल रहे. जबकि सत्ता विरोधी लहर को भांपते हुए विधायकों ने पीसीसी अध्यक्ष के बदलाव का पूरी तरह स्वागत किया. जानकारों का कहना है कि पंजाब में सियासी समीकरण अचानक इस कदर बदले कि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के पास भी आलाकमान का हुक्म बजाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था.
द ट्रिब्यून के एक विश्लेषण के मुताबिक पंजाब में सत्ता विरोधी रुझान के कारण बड़ी संख्या में विधायक नवजोत सिंह सिद्धू के साथ इसलिए खड़े हो गए क्योंकि उन्हें लगा कि सिद्धू जैसा भीड़ खींचने वाला पार्टी की चुनावी संभावनाओं को पुनर्जीवित करने में मदद करेगा. पूर्व पीसीसी प्रमुख सुनील जाखड़ का कहना है कि संदेश स्पष्ट है, सरकार द्वारा अपने वादों को पूरा नहीं करने से जनता नाराज है. अब जब कप्तान ने इस वास्तविकता को स्वीकार कर लिया है, तो यह देखना होगा कि जमीन पर क्या बदलेगा. सीएम के खेमे के राणा गुरजीत सिंह ने कहा कि आलाकमान द्वारा जारी एक निर्देश का पालन सीएम और प्रदेश कांग्रेस प्रमुख सहित सभी को करना था.
इंस्टीट्यूट फॉर डेवलपमेंट एंड कम्युनिकेशन के निदेशक प्रमोद कुमार ने कहा कि कैप्टन के पास आलाकमान के फैसले का पालन करने के अलावा और कोई चारा नहीं था. स्थिति अपने पक्ष में बदलने की प्रतीक्षा कर रहे हैं. उन्होंने नहीं सोचा था कि पीसीसी अध्यक्ष पद में बदलाव से कांग्रेस को मदद मिलेगी. लोग कांग्रेस के साढ़े चार साल के बेकार शासन को भूलने की संभावना नहीं रखते हैं.
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि यह स्पष्ट है कि पार्टी द्वारा चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार ही फैसला किया जाना था, जिन्होंने कथित तौर पर आलाकमान को बताया था कि पंजाब में कांग्रेस “मौजूदा नेतृत्व” के तहत एक और कार्यकाल नहीं जीत सकती है. उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कैप्टन के सलाहकारों ने उन्हें जमीनी स्थिति के बारे में नहीं बताया.