Home देश क्यों नेपाल के लिए चीन की बजाए भारत से रिश्ता ज्यादा फायदेमंद...

क्यों नेपाल के लिए चीन की बजाए भारत से रिश्ता ज्यादा फायदेमंद है?

42
0

नेपाल की राजनीति में फिलहाल काफी उठापटक चल रही है. इसकी बड़ी वजह देश के आंतरिक मामलों में चीन की दखलंदाजी भी है. माना जा रहा है कि चीन के काठमांडू स्थित दूतावास का नेपाल के पॉलिटिकल मामलों में सीधा दखल है. चीन इसके जरिए नेपाल में अपनी पैठ मजबूत करना चाहता है. इसमें नेपाल भी अपना फायदा देख रहा है. चीन ने नेपाल में हाल में काफी इनवेस्टमेंट किया है. हालांकि इसके बाद भी माना जा रहा है कि नेपाल चीन की बजाए भारत से अच्छे संबंध रखे तो ये आर्थिक-सामाजिक और राजनैतिक तौर पर उसके लिए ज्यादा बेहतर रहेगा.

नेपाल से भारत का व्यापार
साल 2018-19 के इकनॉमिक सर्वे में निकलकर आया है कि नेपाल के कुल व्यापार-व्यावसाय का 64% भारत से होता है, चाहे वो आयात हो या निर्यात. इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक नेपाल के तराई इलाकों में अनौपचारिक व्यापार भी होता है. नेपाल के सीमावर्ती इलाकों के लोग बिहार, यूपी और पश्चिम बंगाल से कम कीमत पर सामान खरीदते हैं. ये एक तरह से नॉन-टैरिफ व्यापार है, जिसपर कर नहीं देना होता है.

नेपाल व्यापार के लिए भारतीय बंदरगाहों पर निर्भर

इन्हीं के जरिए वो दुनिया के दूसरे देशों से व्यापार कर पाता है. बता दें कि नेपाल का लगभग 60% निर्यात और आयात वेस्ट बंगाल के हल्दिया और आंध्रप्रदेश के विशापत्तनम से होता है. नेपाल के बीरगंज से हल्दिया काफी पास है इसलिए यहां तक सामान पहुंचाना और यहां से ले जाना नेपाल के लिए काफी आसान और सस्ता भी पड़ता है. अब बात करें विशापत्तनम बंदरगाह की तो ये नेपाल के लिए चीन, साउथईस्ट एशिया, यूएस और यूरोप जैसी सारी जगहों के लिए गेटवे का काम करता है.

भारत ने नेपाल के लिए उड़ीसा के धर्मा बंदरगाह और गुजरात के मुंद्रा पोर्ट को खोलने पर भी हामी भर दी है. इनपर फिलहाल आगे की बातचीत हो रही है.

लंबी-चौड़ी सीमा की साझेदारी
नेपाल और भारत लगभग 1,868 किलोमीटर की सीमा साझा करते हैं. इस पूरी सीमा में व्यापार के लिए 20 एंट्री और एग्जिट पॉइंट्स हैं. इन्हीं रास्तों से भारत नेपाल को पेट्रोलियम उत्पाद, आयरन, स्टील, सीमेंट, दवाएं और कई तरह की मशीनरी का निर्यात करता है. वहीं नेपाल से भारत में चाय, काली इलायची, जूट के उत्पाद और जूस आते हैं.

भारत के लिए भी नेपाल से रिश्ता जरूरी
ये देश के लिए सामरिक के साथ-साथ सांस्कृतिक तौर पर भी काफी अहम है. साल 1950 में हुई में भारत-नेपाल मैत्री संधि के तहत दोनों देशों के नागरिकों को दोनों ही देशों में बसने, जमीन खरीदने जैसी छूटें मिली हुई हैं. दोनों ही देशों के दोनों एक से दूसरे क्षेत्र में बिना किसी वीजा-पासपोर्ट के आ-जा सकते हैं. साथ ही शादी-ब्याह भी होते आए हैं. खासकर सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले लोगों में एक से दूसरे देश में रिश्ते जोड़ना आम है. ऐसे में अगर भारत-नेपाल में कड़वाहट आई तो राजनैतिक के साथ-साथ सामाजिक संबंध भी बुरी तरह से प्रभावित हो सकते हैं.

नेपाल और चीन संबंध
अब अगर नेपाल और चीन की बात करें तो दोनों देश लगभग 1,415 किलोमीटर सीमा साझा करते हैं. इस सीमा में कई भौगोलिक बाधाएं हैं, जिसकी वजह से रास्ते आसान नहीं हैं. चीन और नेपाल के बीच करार के तहत दोनों ओर की सीमा में 30 किलोमीटर के अंदर रहने वाले लोग अपना निवास प्रमाण पत्र दिखाते हुए आ-जा सकते और व्यापार की छोटी-मोटी चीजें खरीद सकते हैं.

ये हैं साझा व्यापार केंद्र
Tatopani-Zhangmu और Rasuwagadhi-Kerung दोनों देशों के बीच सबसे मुख्य व्यापार केंद्र हैं. हालांकि नेपाल में साल 2015 में आए भूकंप के दौरान Tatopani का रास्ता बुरी तरह से प्रभावित हुआ. ये पिछले साल खोल दिया गया लेकिन अब भी यहां से आना-जाना काफी मुश्किल है. नेपाल से आए सामानों का काफी बड़ा हिस्सा वक्त खर्च होने के कारण तिब्बत में ही इस्तेमाल हो जाता है और मेनलैंड चीन तक जा नहीं पाता. अब चीन कोशिश में है कि दोनों देशों के बीच व्यापार का कोई दूसरा आसान केंद्र बन सके, जैसे Kathmandu-Rasuwadadhi हाइवे.