छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बस्तर में पिछले 4 साल में विकास और सुरक्षा के साथ विश्वास पर आधारित त्रिवेणी माॅडल ने 589 गांवों को नक्सल हिंसा से बाहर निकाला और 5 लाख 74 हजार से अधिक लोग हिंसा और दहशत से मुक्त हो गए हैं। भास्कर ने सरकारी दावों की पड़ताल के लिए बस्तर के दुर्गम इलाकों का दौरा किया तो यह बात सामने आई कि नक्सल हिंसा के कारण जो स्कूल एक से डेढ़ दशक (सलवा जुड़ूम काल) पहले बंद हुए थे, उनमें से 262 स्कूल फिर खुल गए हैं और पढ़ाई शुरू हो गई है।
तीन साल में अंधेरे में डूबे 196 गांवों में बिजली पहुंची है। इस वजह से नक्सल वारदातें 2022 में सिमट गईं, जिनकी संख्या सालाना 450 या ज्यादा थी। 525 नए मोबाइल टॉवरों से संचार बढ़ा, जिसका फायदा ग्रामीण और फोर्स दोनों को हुआ है। नक्सल समस्या से जूझ रहे देश के 10 राज्य और 70 जिलों के लिए छत्तीसगढ़ के त्रिवेणी माॅडल की गूंज इसलिए भी है क्योंकि केंद्र सरकार ने इसे नक्सल उन्मूलन के लिए उपयुक्त मान लिया है।
छत्तीसगढ़ में नक्सल फ्रंट पर इस समय तीनों मोर्चे पर काम हो रहा है। सुरक्षा बलों की कार्रवाई लगातार जारी है। इसके तहत डीआरजी, एसटीएफ और सशस्त्र सुरक्षा बल के जवान प्रभावित इलाकों में ऑपरेशन चला रहे हैं। नक्सलवाद की अवधारणा को ही कुंद करने के लिए गांवों में लगातार विकास कार्य कराए जा रहे हैं। मोबाइल टावर लगाकर नक्सल प्रभावित इलाकों को देश-दुनिया से जोड़ा जा रहा है। वहीं अब तक अंधेरे में जीवन बिता रहे आदिवासियों तक बिजली भी पहुंचाई जा रही है। शेष|पेज 9
फोर्स का यह मानना है कि केवल विकास से समाधान नहीं होगा। आदिवासियों में सरकार और प्रशासन के प्रति विश्वास पैदा करना जरूरी है। इसीलिए मनवा नवानार (हमारा नया गांव) का नया नारा देकर वनग्रामों में सुविधाएं पहुंचाई जा रही हैं। फोर्स के जवान ही ग्रामीणों और विभागों के बीच सामंजस्य का काम कर रहे हैं। इसके तहत सुरक्षा कैंपों को समग्र विकास केंद्र के रुप में काम किया जा रहा हैं।
इन कैंपों से ग्रामीणों को शिक्षा, स्वास्थ्य, सार्वजनिक प्रणाली, बिजली, बैंक, आंगनबाड़ी केंद्र की सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं। बस्तर का बड़ा इलाका लंबे समय तक देश दुनिया से कटा रहा। इस कारण प्रशासन की ओर से यह पहल की जा रही है कि ज्यादा से ज्यादा भूभाग तक मोबाइल नेटवर्क पहुंचाया जाए। इसी कड़ी में बस्तर के विभिन्न इलाकों में अब तक 525 मोबाइल टावर खड़े किए जा चुके हैं।
केस 1
सुकमा का चिंतलनार नक्सली हिंसा के लिए कुख्यात है, लेकिन सड़क-बिजली तथा सरकारी सुविधाएं पहुंचने से रौनक दिखने लगी है। नक्सल दहशत से बंद हुआ स्कूल फिर खुल गया है। 10वीं तक कक्षाएं लग रही हैं, 285 बच्चे पढ़ने आ रहे हैं।
बीजापुर के तर्रेम गांव में दिन ढलते ही आवाजाही बंद हो जाती थी, क्योंकि यहां बिजली नहीं थी। पर अब इस गांव में रात में भी चहल-पहल दिखी, क्योंकि 160 घरों तक बिजली पहुंचा दी गई है। लोगों ने बताया कि बिजली आने से दिनचर्या ही बदल गई है।
छत्तीसगढ़ के नक्सल इलाकों में त्रिवेणी माॅडल को ऐसे समझें
सुरक्षा – सात जिलों में 54 बेस कैंप बनाए
- हर वर्ष 15 बेस कैंप प्रारंभ किए
- 2022 में 415 नक्सली सरेंडर
- 741 नक्सलियों की गिरफ्तारी
- जंगल में लगातार ऑपरेशन चले
- चिन्हित एरिया में ज्यादा फोर्स
विकास
- 589 गांव नक्सल प्रभाव से मुक्त
- 259 प्राइमरी, 3 मिडिल स्कूल शुरू
- धान-मक्का के लिए वाजिब मूल्य
- लघु वनोपजों के लिए एमएसपी
- नरवा-गरवा-घुरवा का विस्तार
- धर्मिक-पर्यटन स्थलों को जोड़ा
विश्वास
- ग्रामीणों को 4200 एकड़ वापस
- 4.38 लाख वन अधिकार पत्र
- 50 हजार को जमीन का नक्शा
- शिक्षा फ्री, स्थानीय बोली में पढ़ाई
- आदिवासियों के 632 केस वापस
- 2100 युवकों की पुलिस में भर्ती
सिमटत जा रहे हैं नक्सली
फोर्स के दबाव और प्रशासन की पहुंच के चलते अब नक्सली बस्तर के सीमित भूभाग में सिमटे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि नक्सली अब दंतेवाड़ा के कुछ इलाके, दक्षिण बीजापुर, दक्षिण सुकमा, इंद्रावती नेशनल पार्क के क्षेत्र में, अबूझमाड़ और कोयलीबेड़ा क्षेत्र में सिमट गए हैं।
त्रिवेणी में और काम होंगे
“बस्तर में आने वाले दिनों में बेहतर समन्वय से त्रिवेणी के तहत और काम होंगे। बस्तर में शांति बहाली की दिशा में अनुकूल वातावरण बन रहा है। लोगों का जैसे-जैसे विश्वास अर्जित करेंगे, और सफलता मिलेगी।”
-पी. सुंदरराज, आईजी नक्सल ऑपरेशन