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देश में ऐसा पहली बार:दंतेवाड़ा में सरेंडर कर चुकीं महिला नक्सली बना रहीं तिरंगा, पहले नक्सलियों के लिए काले झंडे बनाती थीं

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कभी नक्सलियों के लिए काली वर्दी और काला झंडा बनाने वाली महिलाएं अब तिरंगा झंडा बना रही हैं। खास बात यह है कि, देश में पहली बार कोई सरेंडर नक्सली तिरंगा बना रहे हैं। अब इसी तिरंगा को दंतेवाड़ा के SP कार्यालय में कल 15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस के दिन फहराया जाएगा। ये वही सरेंडर महिला माओवादी हैं जो नक्सलियों के लिए सिर्फ काला झंडा ही नहीं बनाती थीं, बल्कि 15 अगस्त और 26 जनवरी के दिन स्कूलों में इसे फहराकर काला दिवस मनाती थीं। पढ़िए इन्हीं दो सरेंडर महिला माओवादी की कहानी, उन्हीं की जुबानी।

मैं पायके पोडियम, उम्र 22 साल। नारायणपुर जिले के अबुझमाड़ इलाके के एक छोटे से गांव बटबेड़ा की रहने वाली हूं। मेरा परिवार बड़ा था, भाई-बहनों की संख्या अधिक थी। जब मैं छोटी थी तो उस समय नक्सली गांव में आते-जाते थे। 9 साल की हुई तो नक्सलियों की मुझपर नजर थी। माता-पिता से कहा था इसे हमारे साथ भेजो। मना करने पर जान से मारने की धमकी देते थे। फिर एक दिन रात के अंधेरे में जबरदस्ती घर से उठाकर अपने साथ लेकर चले गए। वह रात मेरे लिए काली थी, उस दिन के बाद का हर दिन मेरे लिए काला ही रहा। फिर जंगल-जंगल घुमाए। हथियार चलाने की तकनीक बताई।

धीरे-धीरे नक्सल माहौल में ढल गई। गांव-गांव जाकर लोगों की पिटाई करना, उत्पात मचाना मेरे लिए आम बात हो गई थी। हथियार चलाने के साथ नक्सलियों ने मुझे सिलाई मशीन चलाना भी सिखाया। काला कपड़ा ला कर देते थे, जिससे उनके लिए वर्दी बैग काला झंडा समेत अन्य जरूरी सामान बनाती थी। जो झंडे मैं बनाती थी उन्हीं झंडे को नक्सली 15 अगस्त और 26 जनवरी के दिन गांव-गांव पहुंच कर स्कूलों में काला झंडा फहराते थे। छोटी उम्र में संगठन में शामिल हुई थी। तब ऐसा लगा कि काला झंडा ही हमारी आन-बान-शान है। देश क्या होता है? पुलिस, सरकार क्या होती है? कुछ नहीं जानती थी।

नक्सल संगठन में काली वर्दी और झंडा बनाने के साथ कई मुठभेड़ में शामिल रही। एक पुरुष नक्सली से प्यार हुआ। बड़े नक्सली ने शादी की इजाजत दी। लेकिन, बच्चे के लिए मनाही थी। इस बीच पता चला कि पुलिस ने मुझपर 3 लाख और पति पर 5 लाख का इनाम रखा है। खैर, बदलते वक्त ने मानसिकता बदली। पहले लगता था जंगल ही सब कुछ है। लेकिन, शादी के बाद अच्छी जिंदगी जीने की चाहत बढ़ी। फिर हम दोनों पति-पत्नी साल 2021 में पुलिस के सामने आकर सरेंडर कर दिए। पहली बार तिरंगे को सलामी दी थी। परेड भी किए थे। मन में शांति मिली। तब पता चला यह हमारा देश है। यह हमारे लोग हैं। अब आज आजादी के इस अमृत महोत्सव पर तिरंगा बनाने का काम कर बेहद खुश हूं।