उत्तर प्रदेश की राजनीति समुदायों और जातियों के समीकरणों की डंडियों पर टिकी है. किसी पार्टी को अगर सूबे में सरकार बनानी है तो हर डंडी का संतुलन और उसे मजबूत रखने की कवायद लगातार करनी पड़ती है.
कुछ ऐसा ही हाल है पश्चिमी यूपी का, जहां की दिशा तय करते हैं जाट. इस इलाके में कहा भी जाता है, जिसके जाट, उसी की ठाठ. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के खेतों की मिट्टी जितनी उपजाऊ है, जाटों की अहमियत भी उतनी ही भारतीय राजनीति में वैसी ही नजर आती है. यूं तो पूरे यूपी में जाट समुदाय की आबादी 4 से 6 फीसद के बीच है लेकिन पश्चिमी यूपी के कुल वोटों में इनकी हिस्सेदारी 17 फीसदी तक है.
71 में 20 से ज्यादा सीटों पर जाटों का प्रभाव
जाट न सिर्फ पश्चिमी यूपी की 71 में से 20 से ज्यादा सीटों पर सीधा असर रखते हैं बल्कि दर्जनों ऐसी सीट हैं, जहां की राजनीतिक दशा और दिशा भी तय करते हैं. 18 लोकसभा सीट भी ऐसी हैं, जहां जाट वोट बहुत ज्यादा मायने रखता है. उत्तर प्रदेश में मेरठ, मथुरा, अलीगढ़, बुलंदशहर, मुजफ्फरनगर, आगरा, बिजनौर, मुरादाबाद, सहारनपुर, बरेली और बदायूं ऐसे जिले हैं, जहां जाटों का खासा प्रभाव है.
इसके अलावा सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत, शामली, बिजनौर, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, मुरादाबाद, संभल, अमरोहा, बुलंदशहर, हाथरस, अलीगढ़ और फिरोजाबाद जिले में जाट वोट बैंक चुनावी नतीजों पर सीधा असर डालता है.
यही कारण है कि सपा से लेकर बीजेपी तक, सभी जाटों को अपने पाले में करने के लिए हर तिकड़म लगा रहे हैं. जहां सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने आरएलडी के जयंत चौधरी के साथ गठबंधन किया है. वहीं देश के गृह मंत्री अमित शाह ने 26 जनवरी को लुटियंस दिल्ली में हुई पंचायत में जाटों के साथ मुलाकात कर गिले-शिकवे दूर करने की कोशिश की.
2022 की पिक्चर क्या है…
2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने पश्चिमी यूपी की 17 सीटों पर जाट उम्मीदवारों को खड़ा किया है तो आरएलडी ने 9 जाट और सपा ने अपने खाते से तीन जाट प्रत्याशियों पर दांव चला है. इसके अलावा बसपा ने भी 10 जाट उम्मीदवारों को टिकट दिया है. कहा जा रहा है कि 19 जाट प्रत्याशियों को और टिकट दिए जा सकते हैं. हालांकि कांग्रेस ने जाट समुदाय पर ज्यादा बड़ा राजनीतिक दांव नहीं चला है. फिलहाल बीजेपी के तीन जाट सांसद हैं और विधानसभा में 14 विधायक जाट हैं. 2017 के चुनाव में सपा, कांग्रेस और बसपा से एक भी जाट विधानसभा नहीं पहुंच पाया था. जबकि रालोद से जीते विधायक ने बीजेपी जॉइन कर ली थी.
विधानसभा ही नहीं पीएमओ तक पहुंचे जाट
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति का बात हो और चौधरी चरण सिंह का जिक्र ना आए तो बात अधूरी रह जाएगी. यहां के जाट हमेशा से चौधरी चरण सिंह को आदर्श मानते हुए भावनात्मक रूप से उनके साथ रहे. चौधरी चरण सिंह ऐसे नेता थे, जिनके पास जमीनी सियासत के गुर से लेकर पीएमओ तक का अनुभव था. चौधरी चरण सिंह के बाद उनके बेटे अजीत सिंह ने जाट चेहरे के तौर पर राष्ट्रीय स्तर की राजनीति की और अब उनकी विरासत को जयंत चौधरी आगे बढ़ा रहे हैं.
चौधरी चरण सिंह ने राजनीति की शुरुआत कांग्रेस से ही की थी. 1967 में उन्होंने कांग्रेस का दामन छोड़ दिया और समर्थकों के साथ क्रांति दल नाम से पार्टी बनाई. इसके बाद वह पहले यूपी के गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने और फिर बाद में देश के प्रधानमंत्री बने. उस जमाने में चौधरी चरण सिंह और किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैट के समर्थन के बिना केंद्र में सरकार बनाना भी मुश्किल माना जाता था.
यूपी में कब चुनाव?
उत्तर प्रदेश में सात चरणों में मतदान होना है. पहले चरण में 10 फरवरी को 11 जिलों की 58 सीटों पर मतदान होगा. इसमें शामली, मुजफ्फरनगर, बागपत, मेरठ, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, हापुड़, बुलंदशहर जिले प्रमुख हैं. दूसरे चरण में 14 फरवरी को नौ जिलों की 55 विधानसभा सीटों पर मतदान होगा. इसमें सहारनपुर, बिजनौर, मुरादाबाद, संभल, रामपुर, बरेली, अमरोहा, पीलीभीत प्रमुख जिले हैं. पहले दोनों चरणों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अधिकांश इलाकों में मतदान होगा.