भारत में कोरोना के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन (Omicron Variant) के मामले सामने आने के बाद लोगों में चिंता पैदा हो गई है. कई ऐसे मामले सामने आए हैं जब ओमिक्रॉन की दस्तक के बाद लोगों को लगने लगा है कि कोरोना की तीसरी लहर शायद इसी वेरिएंट के चलते आएगी. हालांकि कोरोना वायरस को लेकर चेतावनी दे रहे स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस मामले पर अलग राय रखते हैं. उनका कहना है कि ओमिक्रॉन को लेकर जो पैनिक लोग कर रहे हैं, उसकी जरूरत नहीं है लेकिन सावधानी बरतने की जरूरत हमेशा है.
जोधपुर स्थित आईसीएमआर, एनआईआईआरएनसीडी (नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर इम्पलीमेंटेशन रिसर्च ऑन नॉन कम्यूनिकेबल डिसीज) के निदेशक और कम्यूनिटी मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ. अरुण शर्मा कहते हैं कि वायरस अलग-अलग जलवायु में अलग-अलग प्रभाव दिखाता है. जैसा कि कोरोना की पहली और दूसरी लहर के दौरान कई देशों में देखा गया था. अमेरिका, इंग्लेंड, इटली आदि देशों में कोरोना का पहला फेज खतरनाक था, वहीं भारत में दूसरी लहर में ज्यादा गंभीरता देखने को मिली. ऐसे में हाल ही में आए ओमिक्रॉन की बात करें और भारत के लिहाज से ही देखें तो अभी तक ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला है कि ओमिक्रॉन पहले वाले डेल्टा वेरिएंट (Delta Variant) से ज्यादा खतरनाक है.
वायरस के खतरे को लोगों को ऐसे समझना होगा. पहला ये कि क्या नए वेरिएंट से संक्रमित होने से व्यक्ति की जान को खतरा है या ये कि इससे उसको कोई गंभीर बीमारी हो सकती है. अभी तक दक्षिण अफ्रीका से जो भी जानकारी सामने आई है उसमें यही बात बताई गई है कि इससे जान को खतरा नहीं है और न ही इससे संक्रमित मरीजों को अस्पतालों में भर्ती करने की जरूरत पड़ रही है. साउथ अफ्रीका मेडिकल एसोसिएशन की निदेशक का बयान है कि ज्यादातर मरीजों में गंभीर सिरदर्द और जुकाम-सर्दी की परेशानी है लेकिन ऐसा नहीं है कि मरीजों को आईसीयू में भेजना पड़ रहा है.
कुछ समय बाद ओमिक्रॉन हो सकता है गंभीर
डॉ. शर्मा कहते हैं, मैं बार-बार यही बात कह रहा हूं कि अभी हमारे पास पूरे आंकड़े नहीं हैं. अभी मुश्किल से एक हफ्ता हुआ है इस वेरिएंट को सामने आए. कई बार ऐसा होता है कि बीमारी की गंभीरता कुछ समय के बाद पता चलती है और ओमिक्रॉन को भी गंभीरता लेने में कुछ समय लगे और फिर इसके गंभीर मरीज सामने आने लगें लेकिन अभी तक के हालात ये कहते हैं कि भारत में इससे पैनिक होने की कोई जरूरत नहीं है. हालांकि इसका भी जो एक दूसरा पहलू सामने आया है वह यह है कि साउथ अफ्रीकी देशों में बहुत कम कोविड वैक्सीनेशन हुआ है ऐसे में संक्रमण दर वहां अपेक्षाकृत ज्यादा हो सकती है. वहां सिर्फ 30 फीसदी जनता को वैक्सीन मिली है. ऐसे में वहां संक्रमण ज्यादा होने की यह भी एक वजह हो सकती है. जबकि भारत में बड़ी संख्या में लोगों को कम से कम पहली वैक्सीन मिल चुकी है.
अभी ओमिक्रॉन के कम खतरनाक होने की यह हो सकती है वजह
डॉ. शर्मा कहते हैं कि इस वेरिएंट के अभी कम खतरनाक होने की एक ये भी वजह नजर आ रही है कि दक्षिण अफ्रीकी देशों में जहां वैक्सीनेशन अपने आप में कम हुआ है, वहां भी इसके संक्रमितों की संख्या तो बढ़ रही है लेकिन इसके गंभीर मरीज नहीं मिल रहे हैं, जिन्हें अस्पताल, आईसीयू या वेंटिलेटर की जरूरत पड़ रही है. ऐसे में अभी इसे खतरनाक नहीं माना जा रहा है. हालांकि अगले 15-20 दिनों में संभव है कि पता चले कि यह वेरिएंट कितना हानि पहुंचा सकता है. इसीलिए डब्ल्यूएचओ ने इसे वेरिएंट ऑफ कंसर्न रखा है. ताकि सभी देश इसकी निगरानी रखें और इस वेरिएंट के व्यवहार को देखें.