हाल में सामने आए डाटा से पता चलता है कि कोविड वैक्सीन (Covid-19 Vaccine) का प्रभाव कम हो रहा है. अमेरिका (America) और इजरायल (Israel) में वैक्सीन के प्रभाव में खासतौर पर कमी देखी गई है, लेकिन कोविड (COVID-19) के गंभीर मामलों में वैक्सीन अस्पताल में भर्ती होने से बचाने में काफी प्रभावी है. इजरायल में हुए अध्ययन में पता चला है कि 2021 की शुरुआत में वैक्सीन लगवाने वाले लोगों के संक्रमण का शिकार होने का खतरा बढ़ गया है, जबकि बाद में वैक्सीनेशन (COVID-19 Vaccination) करवाने वाले लोगों में यह खतरा कम है. सवाल ये है कि क्या इन स्थितियों से चिंतित होने की जरूरत है. इसका जवाब है, नहीं. क्योंकि अस्पताल में भर्ती होने से रोकने में वैक्सीन अब भी काफी प्रभावी है. आम तौर पर एक सार्वजनिक टीकाकरण कार्यक्रम को संक्रमण, ट्रांसमिशन और अस्पताल में भर्ती (मौत) से बचाने में कारगर होना चाहिए. शुरुआत में वैक्सीन संक्रमण और हॉस्पिटलाइजेशन के खिलाफ बेहद प्रभावी रही है. अगर इंफेक्शन के खिलाफ वैक्सीन का प्रभाव कम भी होता है, तब भी हॉस्पिटलाइजेशन के खिलाफ वैक्सीन काफी प्रभावी है, क्योंकि हॉस्पिटलाइजेशन की स्थिति में ही स्वास्थ्य व्यवस्था पर सबसे ज्यादा बोझ पड़ता है. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक आंकड़ों से पता चलता है कि हॉस्पिटलाइजेशन के खिलाफ वैक्सीन काफी प्रभावी है. ब्रिटेन में हाल में देखें गए ट्रेंड भी इस ओर इशारा करते हैं. ब्रिटेन में संक्रमण के मामले जनवरी 2021 के शीर्ष स्तर तक पहुंच गए थे, लेकिन मृत्य के मामले पहले की तरह ही 10 फीसद के आसपास रहे.
वैक्सीन के प्रभावों में अंतर क्यों है?
यह कहा जाना कि इम्यून सिस्टम असाधारण तौर पर जटिल है. यह एक बहुत ही छोटी व्याखा होगी, उस इम्युन सिस्टम की जो हमें बीमार करने वाले कई तत्वों से बचाता है. वायरस जब हमारे शरीर को संक्रमित करता है, तो यह मुख्य तौर पर दो जगहों पर पाया जाता है. एक सर्कुलेशन सिस्टम में, जिसके जरिए यह पूरे शरीर में ट्रैवल करता है और दूसरी अलग-अलग प्रकार की कोशिकाओं में, जिनको संक्रमित करके वायरस अपनी संख्या बढ़ाता है. इन दो जगहों पर वायरस का मुकाबला करने के लिए इम्युन सिस्टम दो तरीके अपनाता है. एक एंटीबॉडी है. एंटीबॉडी सर्कुलेट कर रहे वायरस के प्रोटीन की तरह पर लॉक इन हो जाता है. और वायरस को अन्य कोशिकाओं को संक्रमित करने से रोकता है. आगे एंटीबॉडी वायरस के खात्मे का कारण बनता है. एंटीबॉडी को फर्स्ट लाइन डिफेंस भी कहा जाता है. हालांकि वायरस अगर कोशिकाओं को एक बार संक्रमित करने में कामयाब हो जाता है, तो एंटीबॉडी निष्प्रभावी हो जाती है. ऐसे में इम्युन सिस्टम की सेकेंड लाइन डिफेंस एक्टिव हो जाती है.
इंडियन एक्सप्रेस में डॉ तुषार गोरे ने लिखा है कि सेकेंड लाइन डिफेंस सिस्टम को किलर टी-सेल भी कहा जाता है. ये हमारे शरीर में मौजूद उन कोशिकाओं को टारगेट करती हैं, जिन्हें वायरस संक्रमित कर चुका होता है. टी-सेल ऐसी कोशिकाओं को मार देती है. इस तरह वायरस भी मर जाता है. सरल भाषा में ऐसे समझिए कि वायरस संक्रमण तब गंभीर होता है, जब वायरस हमारी कोशिकाओं को पूरी तरह संक्रमित कर देता है और उन पर अपनी पकड़ बना लेता है. ऐसे में मजबूत टी-सेल इम्यून सिस्टम हमारी सुरक्षा करता है, बावजूद कि शरीर का एंटीबॉडी रेस्पांस कमजोर होता है.