पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों को देखते हुए सरकार ऑटो सेक्टर में फ्लेक्स-फ्यूल इंजन को अनिवार्य करने पर विचार कर रही है। केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी के अनुसार इस बारे में सरकार अगले 8 से 10 दिनों में फैसला ले सकती है। गडकरी ने रोटरी जिला सम्मेलन 2020-21 को वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए संबोधित करते हुए यह जानकारी दी।
इससे आम अदमी को मिल सकती है बड़ी राहत
नितिन गडकरी ने कहा कि वैकल्पिक ईधन एथेनॉल की कीमत 60-62 रुपए प्रति लीटर है जबकि पेट्रोल की कीमत 100 रुपए प्रति लीटर के पार निकल गई है। उन्होंने कहा, “मैं परिवहन मंत्री हूं, मैं उद्योग के लिए आदेश जारी करने जा रहा हूं कि केवल पेट्रोल से चलने वाले इंजन नहीं होंगे, हमारे पास फ्लेक्स-फ्यूल इंजन होंगे। लोगों के पास विकल्प होगा कि वे पेट्रोल या एथेनॉल में किसका इस्तेमाल करें।”
यहां समझें क्या होता है फ्लेक्स फ्यूल इंजन?
इस इंजन की खास बात ये होती है कि इसमें दो तरह के फ्यूल डाले जा सकते हैं। ये सामान्य इंटर्नल कम्ब्यूशन इंजन (ICE) इंजन जैसा ही होता है, लेकिन ये एक या एक से अधिक तरह के फ्यूल से चल सकता है। कई मामलों में इस इंजन को मिक्स फ्यूल का भी इस्तेमाल किया जाता है। यानी आप इसमें दो तरह के फ्यूल डाल सकते हैं और यह इंजन अपने हिसाब से इसे काम में ले लेता है।
ना रही हैं। इससे ग्राहकों को 100% पेट्रोल या 100% बायो-इथेनॉल के इस्तेमाल का ऑप्शन उपलब्ध कराया जा रहा है।
2023 तक 20% एथेनॉल ब्लेंडिंग का लक्ष्य
सरकार ने अगले दो साल में पेट्रोल में 20% एथेनॉल ब्लेंडिंग (सम्मिश्रण) का लक्ष्य रखा है। इससे देश को महंगे कच्चे तेल आयात पर निर्भरता कम करने में मदद मिलेगी। पेट्रोलियम मंत्रालय के अनुसार तेल कंपनियां भारतीय मानक ब्यूरो के मानकों के हिसाब से 20% एथेनॉल के मिश्रण वाला पेट्रोल बेचेंगी। यह नियम 1 अप्रैल, 2023 से लागू होगा। मौजूदा वक्त में पेट्रोल में 8.5% एथेनॉल मिलाया जाता है।
एथेनॉल इको-फ्रैंडली फ्यूल है। एथेनॉल एक तरह का अल्कोहल है जिसे पेट्रोल में मिलाकर गाड़ियों में फ्यूल की तरह इस्तेमाल किया जाता है। एथेनॉल का उत्पादन गन्ने से होता है।
इससे लोगों को जल्दी राहत देना संभव नहीं
सीनियर इकोनॉमिस्ट बृंदा जागीरदार कहती हैं कि सरकार को इस समय ऐसे उपायों के बारे में सोचना चाहिए, जिससे लोगों को महंगाई से तुरंत राहत मिल सके। लेकिन फ्लेक्स-फ्यूल इंजन जैसे उपायों को लागू करना आसान नहीं है और इसमें काफी समय लगेगा। इसके अलावा इससे नए वाहनों की लागत और कीमतों पर भी असर होगा। ऐसे में आम लोगों के लिए यह कब और कितना प्रभावी होगा इसके बारे में कुछ भी कहना मुश्किल है।