जहां एक तरफ दुनिया कोरोनोवायरस महामारी (coronavirus pandemic)से बाहर निकलने के लिए अपना रास्ता तैयार कर रही है, तेजी से वैक्सीन बनाने पर काम चल रहा है. वहीं, दूसरी तरफ कई देशों में सरकार और अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक और चुनौती सामने आ गई है.
. जहां एक तरफ दुनिया कोरोनोवायरस महामारी (coronavirus pandemic)से बाहर निकलने के लिए अपना रास्ता तैयार कर रही है, तेजी से वैक्सीन बनाने पर काम चल है. वहीं, दूसरी तरफ कई देशों में सरकार और अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक और चुनौती सामने आ गई है. वह चुनौती है महंगाई की, भुखमरी की. जी हां! कोरोनावायरस महामारी से तो काफी हद तक राहत है लेकिन अब जो नई मुसीबत सामने आ रही है वह महंगाई की है. दुनियाभर के कई देशों में इस समय जरूरत के सामानों के दाम आसमान पर है. आम लोग परेशान हैं और हो भी क्यों ना कोरोना में लाखों-करोड़ों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा है. ऐसे में बढ़ती महंगाई में जीवन यापन काफी चुनौती भरा है.
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक खाद्य कीमतें पिछले छह साल में सबसे अधिक हैं. चीन से मांग बढ़ने, कमजोर सप्लाई चेन और प्रतिकूल मौसम के कारण सोयाबीन से लेकर पाम ऑयल तक हर चीज की लागत में भारी उछाल आया है. कुछ बैंकों ने तो चेतावनी दे दिया है कि दुनिया एक कमोडिटी सुपर साइकिल (commodities supercycle)में बदल रही है. रोजमर्रा की बढ़ती कीमतों ने ग्राहकों को डायरेक्ट प्रभावित किया है.
सूडान में खाने को लेकर प्रदर्शन
सूडान में भोजन इस समय सबसे बड़ी समस्या है. साल की शुरुआत के बाद से ही सूडान में विरोध प्रदर्शन चल रहा है. भारत में किसानों ने कीमतें नीचे लाने के प्रयासों के खिलाफ विद्रोह किया. रूस और अर्जेंटीना ने घर पर कीमतों को दबाने के लिए फसल लदान को प्रतिबंधित कर दिया है. यहां तक कि संयुक्त अरब अमीरात जैसे अमीर देश भी इस तरह की समस्याओं को फेस कर रहा है. अमीरात कुछ खाद्य पदार्थों पर संभावित मूल्य कैप्स पर विचार कर रहे हैं.
अमीर और गरीब दोनों देशों पर पड़ा प्रभाव
बता दें कि इस प्रभाव अमीर और गरीब दोनों देशों पर पड़ा है. अमीर पश्चिमी देशों के लिए महंगाई सिर्फ उत्पाद ब्रांड को बदलने का मामला हो सकता है लेकिन सबसे गरीब राष्ट्रों में इसका मतलब बच्चे को स्कूल भेजने या पैसे कमाने के बीच का अंतर हो सकता है. फिर भी इसके सबसे बड़े मध्यम-आय वाले देशों में जहां प्रभाव दुनिया के लिए सबसे अधिक प्रभावित हो सकते हैं. सबसे अधिक आबादी वाले देशों में जहां भोजन की लागत उपभोक्ता मूल्य बास्केट का एक बड़ा हिस्सा है. वहां सरकारें कार्रवाई करने के लिए अधिक दबाव में हैं. ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स लिमिटेड के अनुसार, करेंसी में लगातार गिरावट के कारण लैटिन अमेरिका की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था पिछले एक साल में खाद्य पदार्थों की कीमतों में सबसे तेज वृद्धि के कारण उभरते बाजारों के बीच है.
रूस में खाद्य कीमतों को फ्रीज करने का भी आदेश
हाल के हफ्तों में दुनिया के नंबर 1 गेहूं निर्यातक ने विदेशों में बिक्री पर अंकुश लगाने और घरेलू कीमतों को कम करने के लिए डिज़ाइन किए गए टैरिफ लागू किए हैं. रूस के सबसे बड़े खुदरा विक्रेताओं को कुछ खाद्य कीमतों को फ्रीज करने का भी आदेश दिया गया था, जिसमें पिछले साल से एक तिहाई से अधिक आलू और गाजर थे. इस तरह की सीमाएं मुद्रास्फीति को पीछे छोड़ सकती हैं और ईंधन खत्म कर सकती हैं. ऑडिट चैंबर ने जनवरी में अनुमान लगाया था कि मार्च के अंत में प्रतिबंध हटा दिए जाने पर खाद्य कीमतों में वृद्धि होगी.
नूडल्स, चावल और पास्ता जैसी चीजों की जमाखोरी
अफ्रीका की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में खाद्य कीमतें देश के मुद्रास्फीति सूचकांक के आधे से अधिक के लिए बनी हुई हैं और जनवरी में 12 से अधिक वर्षों में सबसे तेज गति से बढ़ी हैं. एक औसत नाइजीरियाई परिवार अपने बजट का 50% से अधिक भोजन पर खर्च करता है.
तेल की कीमतों में गिरावट के बाद सुधरे हुए माल को आयात करने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार की आवश्यकता है. किसानों पर आपूर्ति की अड़चनों और आंदोलनों ने कृषि वस्तुओं की आपूर्ति पर भी भार डाला है.दुनिया के कई देशों में नूडल्स, चावल और पास्ता जैसी चीजों की जमाखोरी चल रही है.
भारत में किसानों का आंदोलन
अमेरिका के बाद सबसे कृषि योग्य भूमि का घर भारत दुनिया का सबसे बड़ा चावल का निर्यातक और गेहूं का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है. बावजूद इस समय देश में बाल कुपोषण की उच्चतम दर है. वर्तमान में भारत में राजनीतिक तनाव के केंद्र में भोजन बना हुआ है. फसलों के लिए बाजार को उदार बनाने के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के एक कदम पर किसानों द्वारा विरोध प्रदर्शन बढ़ा है. वहीं, दूसरी तरह ईंधन की बढ़ती कीमतों ने आम जन को परेशान कर रखा है.