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अलवर का एक ‘पहलू’ यह भी:इस्लामिक स्टडीज एंट्रेंस के टॉपर शुभम ने खोला राज, कहा- एग्जाम में इस्लाम से जुड़े इक्का-दुक्का ही थे सवाल

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पहलू खान केस के मामले में सामने आई मॉब लिंचिंग से अलवर पर बड़ा दाग लगा है। यह मामला पूरे देश की सुर्खियों में रहा और जमकर राजनीति भी होती रही। अब अलवर के ही एक युवक ने इस दाग को धोने और मुस्लिम हिंदुओं के बीच की खाई को कम करने के मकसद से नई राह निकाली है। सिविल सेवा की तैयारी कर रहे शुभम यादव ने इस्लामिक स्टडीज की प्रवेश परीक्षा में देश में पहल स्थान प्राप्त किया। सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ कश्मीर की ओर से आयोजित इस प्रवेश परीक्षा में भाग लेने के पीछे भी शुभम का यही मकसद है कि उसे इस्लामिक कल्चर को समझना है। ऐसा कहना गलत है कि इस्लाम ने उनको अधिक प्रभावित किया है, बल्कि सिर्फ इतिहास विषय के नजरिए से इस्लाम की संस्कृति को समझने का मकसद है।

शुभम यादव ने बताया कि जिले में हुई मॉब लिंचिंग की घटना के बाद उसका यह मन बना की इस्लामिक कल्चर को समझना चाहिए। ताकि भविष्य में सिविल सर्विस मिलने के बाद हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच बेहतर तालमेल के लिए काम किया जा सके। यह तभी संभव है जब दोनों धर्मों के कल्चर को अच्छे से समझा जाए। इसी समझ से मैंने इस्लामिक कल्चर को समझने के लिए इस्लामिक स्टडीज की ओर आगे कदम बढ़ाया है।

प्रवेश परीक्षा में इस्लाम से संबंधित ज्यादा सवाल नहीं
शुभम यादव ने बताया कि सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ कश्मीर की ओर से आयोजित इस्लामिक स्टडीज की प्रवेश परीक्षा में इस्लाम से जुड़े हुए तो दो चार सवाल ही आते हैं। बाकी अधिकतर सामान्य अध्ययन और अंग्रेजी समेत कई अन्य विषयों के सवाल ज्यादा पूछे जाते हैं। मैंने इस प्रवेश परीक्षा के लिए कोई बहुत अधिक तैयारी नहीं की। मेरे कुछ दोस्तों से सामान्य जानकारियां जरूर मिली। सिविल सर्विस की तैयारी मेरी चल रही है। इसी वजह से इस एंट्रेंस एग्जाम में टॉपर रहा हूं।

गलत अर्थ निकालना और कमेंट करना सही नहीं
शुभम का यह भी कहना है कि सोशल मीडिया पर प्रवेश परीक्षा में टॉप आने के बाद कई तरह की खबरें है। जिनके साथ आमजन के हजारों कमेंट्स आने लगे हैं। बहुत से लोगों ने अनर्गल टिप्पणी की है। जो बिल्कुल गलत है।

यह इतिहास का भाग समझो
इस्लामिक स्टडीज एक तरह से इतिहास का भाग है। जिसमें यह बताया जाता है कि सरिया कैसे बनी। इस्लाम का कल्चर और हिस्ट्री को जानना परीक्षा की तैयारी करने वालों के लिए बहुत जरूरी है।

मतभेद कम कराने वाले अधिकारी जरूरी
शिभम का यह भी कहना है कि हिंदू मुसलमान के बीच मतभेद बढ़ने लगे हैं। अगले 5 साल में यदि जिम्मेदार अधिकारियों की भूमिका कमजोर पड़ी तो यह और अधिक बढ़ जाएगा। मेरा खुद भी इस विषय को समझना इसलिए जरूरी हो गया कि ताकि भविष्य में सिविल सर्विसेज में आने के बाद दोनों समुदायों के बीच बेहतर तालमेल बैठाया जा सके।