Home व्यापार कंपनी के खिलाफ शिकायत करना बदले की भावना नहीं: नारायणमूर्ति

कंपनी के खिलाफ शिकायत करना बदले की भावना नहीं: नारायणमूर्ति

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इंफोसिस के सह-संस्थापक एन आर नारयणमूर्ति ने कहा है कि​ व्हिस्ल ब्लोअर के​ खिलाफ कंपनी बोर्ड को खुद ही जांच कर फैसले नहीं लेना चाहिए. हालांकि, निचले या मध्यम स्तर के कर्मचारियों के लिए विशेष कमेटी जांच कर सकती है

अगर कोई व्हिस्ल ब्लोअर पुख्ता सबूत के साथ अपने दावों को रखता है तो इसे प्रतिशोध नहीं माना जाना चाहिए. आईटी सेक्टर की दिग्गज कंपनी इंफोसिस के सह-संस्थापक एन आर नारायणमूर्ति ने यह बात कही है. उन्होंने ऑल इंडिया मैनेजमेंट एसोसिएशन के 47वें नेशनल मैनेजमेंट कन्वेन्शन में 21 सितंबर को यह बात कही है. नाराणयणमूर्ति ने कहा, ‘अगर कोई व्हिसिलब्लोवर बॉस के किसी बात को सबूत के साथ रखता है तो कंपनी को उसे पूरी सुरक्षा देनी चाहिए.’

अगर कोई व्हिसिब्लोअर पारदर्शी रूप से शिकायत करता है कंपनी बोर्ड को कंपनी की गरिमा को बचाएं और कर्तव्यों को पूरा करे. कंपनी बोर्ड का यह एक महत्वपूर्ण काम है.

उन्होंने कहा कि अगर मध्य या निचले स्तर के ​कर्मचारी के खिलाफ कोई शिकायत सामने आती है तो इसके लिए आंतरिक कमेटी बनाकर सुलझाना चाहिए. इसमें उन सीनियर कर्मचारियों को शामिल किया जाना चाहिए, जो आरोपी के संपर्क में नहीं है. दावो की जांच के लिए यह पर्याप्त होना चाहिए.

बोर्ड खुद ही नहीं ले सकता फैसले
उन्होंने आगे कहा कि अगर चेयरमैन, सीईओ या एक्जीक्युटिव डायरेक्टर समेत किसी अन्य बोर्ड सदस्यों के खिलाफ शिकायत आती है तो अमूमन अधिकतर बोर्ड मौजूदा नियम कानून के आधार पर खुद ही इसकी जांच करते हैं… यह एक सही आइडिया नहीं है क्योंकि न्यायधीश, जूरी और अभियुक्त नहीं बन सकते है.

इंफोसिस में आ चुके हैं ऐसे मामले
बता दें कि 2018 में एक व्हिसिब्लोअर ने इंफोसिस के कॉरपोरेट गवर्नेंस पर सवाल उठाते हुए सह—संस्थापक नंदन निलेकणी पर कई आरोप लगाये थे. निलेकणी पर आरोप था कि उन्होंने पिछले बोर्ड द्वारा गलत कामों को चुपचाप दबाने की कोशिश की थी. इस बारे में शिकायतकर्ता ने ​भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड यानी सेबी को एक लेटर भी लिखा था.

इसके बाद अक्टूबर 2019 में भी एक व्हिसिब्लोअर ने सीईओ सलिल पारेख और सीएफओ निलंजन रॉय पर अकाउंटिंग अनियमितताओं को लेकर आरोप लगाया था. देश की दूसरी सबसे बड़ी आईटी कंपनी ने इस बाद एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की थी. यह रिपोर्ट आॅडिटी कमेटी की जांच के बार जारी हुआ था. इसके बाद कंपनी को क्लिनचिट दिया गया था.