अमेरिका और चीन के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है. ताजा तनाव साउथ चाइना सी (US-China tension over South China Sea) को लेकर है. अमेरिका के लगातार सैन्याभ्यास के बीच चीन ने उसपर लड़ाई के लिए उकसाने का आरोप लगाया है. इधर दोनों देशों के बीच वर्चस्व की लड़ाई में आसियान (ASEAN) देश फंस गए हैं. उन्हें दोनों में से किसी एक को चुनने का दबाव बन गया है. जानिए क्या है आसियान और चीन-अमेरिका की लड़ाई से इनपर क्या फर्क पड़ेगा.
क्या है आसियान के मायने
इसका पूरा नाम एसोसिएशन ऑफ साउथईस्ट एशियन नेशन्स (ASEAN) है. दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों का ये संगठन आपस में शांति और आर्थिक मजबूती के लिए साल 1967 में बना. इसके तहत 10 देश आते हैं, जिनमें इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, ब्रुनेई, वियतनाम, लाओस, म्यांमार और कंबोडिया शामिल हैं. इनके कई उद्देश्यों में एक है राजनैतिक और आर्थिक समानता लाना. जैसे फिलहाल सिंगापुर और कंबोडिया को ही लें तो दोनों देशों में आर्थिक असमानता काफी ज्यादा है. इसे पाटना भी एक मकसद है.
आसियान की बुलाई मीटिंग
चीन समुद्र के लिए वैसे तो वियतनाम और ताइवान से भिड़ा हुआ है लेकिन बाकी सारे आसियान देशों को अपनी तरफ करने की कोशिश कर रहा है. इसी महीने की शुरुआत में चीन ने सारे आसियान देशों को साउथ चाइन सी मामले पर मीटिंग करने को कहा. ये मीटिंग अमेरिका के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट माइक पॉम्पियो के उस बयान के बाद बुलाई गई, जिसमें उन्होंने समुद्र पर चीन के कब्जे पर टोका था. पॉम्पियो ने कहा था कि चीन की समुद्र हथियाने की कोशिश पूरी तरह से गैरकानूनी है.
क्या कह रहा है चीन
मीटिंग में चीन ने कई बार अमेरिका का नाम लिए बगैर बाहरी देशों का जिक्र किया. साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के हवाले से यूरेशियन टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि बीजिंग ने इस बात चिंता जताई के साउथ चाइना सी में “non-regional countries” का दखल बढ़ा है, जिससे वहां सैन्य तनाव आ सकता है. बता दें कि ताइवान के अलावा बाकी चारों देश (फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया और ब्रुनेई) भी आसियान का हिस्सा हैं, जो खुद भी साउथ चाइना सी के कुछ न कुछ हिस्से को अपना बताते रहे हैं.
क्या कर रहा है अमेरिका
दूसरी ओर अमेरिका भी आसियान देशों को अपने पाले में लेने की कोशिश कर रहा है. वो चीन को धमकाते हुए एक तरह से ये संकेत दे रहा है कि वो आसियान देशों के साथ है. इसी कार्रवाई के तहत वॉशिंगटन ने बुधवार को दक्षिण चीन सागर में निर्माणकार्य और सैन्य कार्रवाई में लगी चीन की 24 कंपनियों को अपने यहां ब्लैकलिस्ट कर दिया. ये एक तरह का खुला इशारा है कि आसियान देशों को चीन या अमेरिका- दोनों में से एक को चुनना होगा.
क्या कहते हैं आसियान के अधिकारी
इस बीच आसियान के दो वरिष्ठ अधिकारियों ने दो सुपर पावर्स की लड़ाई का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया. यूरेशियन टाइम्स की एक रिपोर्ट में इसका जिक्र है. सिंगापुर और इंडोनेशिया के इन दोनों अधिकारियों ने कहा कि वे छोटे देश नहीं हैं, उनका बाजार हर जगह फैला है. ऐसे में किसी एक का साथ देना मुश्किल होगा. साथ ही आसियान देश अपने-आप में चीन और अमेरिका दोनों के लिए महत्व के हैं. वे खुद भी इनका साथ नहीं छोड़ेंगे.
आसियान देश ये भी उम्मीद कर रहे हैं कि अगर आने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में जो बिडेन जीते तो भी आसियान देशों से ये दबाव कम हो जाएगा. बता दें कि बिडेन को लगातार चीन के मामले में नर्म रवैये का माना जा रहा है. तब चीन या अमेरिका में से एक को चुनने की जरूरत नहीं रहेगी.
कहां है दक्षिण चीन सागर
ये प्रशांत महासागर के पश्चिमी किनारे से सटा हुआ है और एशिया के दक्षिण-पूर्व में पड़ता है. इसका दक्षिणी हिस्सा चीन के मेनलैंड को छूता है. दूसरी ओर दक्षिण-पूर्वी भाग पर ताइवान अपनी दावेदारी रखता है. सागर का पूर्वी तट वियतनाम और कंबोडिया से जुड़ा हुआ है. पश्चिमी तट पर फिलीपींस है. साथ ही उत्तरी इलाके में इंडोनेशिया के द्वीप हैं. इस तरह से कई देशों से जुड़ा होने के कारण इसे दुनिया के कुछ सबसे ज्यादा व्यस्त जलमार्गों में से एक माना जाता है. इसी मार्ग से हर साल 5 ट्रिलियन डॉलर मूल्य का इंटरनेशनल बिजनेस होता है. ये मूल्य दुनिया के कुल समुद्री व्यापार का 20 प्रतिशत है. इस सागर के जरिए चीन अलग-अलग देशों तक व्यापार में सबसे आगे जाना चाहता है