भारत अब अपनी ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल दूसरे देशों को भी देने की तैयारी में है. बता दें कि रूस के साथ पार्टनरशिप में बने इस घातक मिसाइल को अब तक के सबसे घातक मिसाइल में माना जा रहा है. ये कम ऊंचाई पर इतनी तेजी से उड़ान भरती है कि रडार को भी चमका दे पाती है. अब कई दूसरे देश भारत से ये मिसाइल खरीदना चाह रहे हैं. हाल ही में भारत और रूस ने इसके लिए हामी भी भर दी. जानिए, क्या है ब्रह्मोस, जिसे खरीदनी की देशों में होड़ शुरू है.
दूसरे देशों से आई मांग
आर्मी 2020 फोरम के दौरान ब्रह्मोस एरोस्पेस ने सोमवार को एलान किया कि अब इस मिसाइल की बिक्री शुरू हो जाएगी. यूरेशियन टाइम्स ने अपनी खबर में कंपनी के हवाले से बताया कि बहुत से देश इसकी खरीदी में दिलचस्पी दिखा रहे हैं. इसकी वजह ये है कि ब्रह्मोस फिलहाल दुनिया की सबसे तेज एंटी-क्रूज मिसाइल है. रूस की एनपीओ मशीनोस्ट्रोयेनिया (NPO Mashinostroeyenia) तथा भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने मिलकर साल 1998 में इसे तैयार किया था.
स मिसाइल की सबसे बड़ी खूबी ये है कि इसे जमीन, हवा, पनडुब्बी या युद्दपोत से भी दागा जा सकता है. यानी किसी देश से लड़ाई के हालात बनने पर ये सभी सेनाओं के काम आ सकता है. हवा में ही ये अपना रास्ता बदलकर वार कर सकता है. इस खूबी के कारण दुश्मन सेना इसकी तोड़ जल्दी नहीं खोज सकती.
अमेरिकी मिसाइल से भी आगे
वैसे ब्रह्मोस को सबसे ज्यादा खतरनाक इसलिए माना जा रहा है कि क्योंकि ये अमेरिका की टॉम हॉक से लगभग दोगुनी तेजी से वार कर सकती है. यही खूबी इसे दुनिया का सबसे मारक प्रक्षेपास्त्र बनाती है. बता दें कि टॉमहॉक क्रूज मिसाइल को अमेरिकी अस्त्रागार के उन नायाब हथियारों में शामिल किया जाता रहा जिससे बड़े-बड़े दुश्मन भी खौफ खाएं. लेकिन भारत और रूस ने मिलकर इससे भी तेज मिसाइल तैयार कर ली.
भारत की ब्रह्मपुत्र और रूस की मस्कवा नदी के नाम पर इस मिसाइल को ब्रह्मोस कहा गया. रूस इस परियोजना में प्रक्षेपास्त्र तकनीक उपलब्ध करवाता और उड़ान के दौरान मार्गदर्शन करने की क्षमता भारत ने विकसित की थी. हाल ही में इसमें कई एडवांसमेंट भी हुए. जैसे मेनुवरेबल तकनीक का टेस्ट. दागे जाने के बाद अपने लक्ष्य तक पहुंचने से पहले मार्ग बदलने की क्षमता को मेनुवरेबल टेक्नीक कहते हैं
दिशा बदल पाती है
मिसाल के तौर पर टैंक से छोड़े जाने वाले गोलों तथा अन्य मिसाइलों का लक्ष्य पहले से निश्चित होता है और वे वहीं जाकर गिरते हैं. या फिर लेजर आधारित मिसाइल होती है, जो किरणों की मदद से निशाना साधती हैं. हालांकि अगर टारगेट काफी दूर हो और लगातार मूवमेंट हो रहा हो, तो ये सारे तरीके फेल हो जाते हैं. ऐसे में ब्रह्मोस की यही तकनीक काम आती है. यानी अगर मिसाइल के दागे जाने के बाद टारगेट अपनी जगह से हटने लगे तो उसके मुताबिक ये भी अपनी दिशा बदल लेती है और उसे नष्ट करते ही रुकती है.
अब दोनों देश मिलकर ब्रह्मोस 2 भी लाने की तैयारी में हैं. ये ज्यादा एडवांस होगा. ऐसा अनुमान है कि इसकी क्षमता पुरानी मिसाइल से 9 गुना ज्यादा होगी. साथ ही वैज्ञानिक ये कोशिश भी कर रहे हैं कि यह प्रक्षेपास्त्र एक बार लक्ष्यभेद करने के बाद दोबारा इस्तेमाल हो सके. फिलहाल जो वर्जन है, उसकी गति 2.8 मैक (ध्वनि की रफ्तार के बराबर) है. इस मिसाइल की रेंज 290 किलोमीटर है और ये 300 किलोग्राम भारी युद्ध सामग्री ले जा सकती है.
कहां हैं चीन और पाकिस्तान
माना जा रहा है कि ब्रह्मोस जैसी क्षमता वाली मिसाइल भारत के पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान के पास नहीं है. या फिर हो भी तो फिलहाल इसके बारे में किसी को जानकारी नहीं है.
चीन के पास डॉगफेंग (DF)-31AG अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल है, जो 10,000 किलोमीटर तक मार कर सकता है. इसके अलावा मध्यम दूरी की मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइल DF-21D भी है. इन सबके बीच भी चीन के पास ऐसी कोई मिसाइल नहीं है जो पानी, जमीन और आसमान से समान क्षमता से वार कर सके. वहीं पाकिस्तान के पास बाबर-3 मिसाइल है, जो केवल पनडुब्बी से मार कर सकती है.