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अवमानना केस: प्रशांत भूषण के समर्थन में आए सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज, कही ये बात

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अवमानना केस (Contempt of Court) में सुप्रीम कोर्ट से दोषी करार दिए गए वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण (Prashant Bhushan) के समर्थन में अब सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) और हाईकोर्ट (High Court) के कई रिटायर्ड जस्टिस और रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट आ गए हैं. इनके साथ कई शिक्षाविद और वकीलों ने भी प्रशांत भूषण के समर्थन में आना शुरू कर दिया है. बता दें कि प्रशांत भूषण को दोषी करार दिए जाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ 3 हजार से अधिक लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं, जिनमें से 13 सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज हैं.

बताया जाता है जिस चिट्ठी में तीन हजार से अधिक लोगों ने हस्ताक्षर किए है उसमें प्रशांत भूषण के खिलाफ 14 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के फैसले को खारिज करने की अपील की गई है. चिट्ठी में लिखा है कि एक स्वतंत्र न्यायपालिका में जज और वकील, दोनों शामिल हैं जो संवैधानिक लोकतंत्र में कानून के शासन का आधार है. इस चिट्ठी में कहा गया है कि दोनों के बीच संतुलन का अभाव या झुकाव, संस्था और राष्ट्र दोनों के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है.

चिट्ठी में कहा गया है कि न्यायपालिका को किसी तरह की पूरी छूट नहीं है कि उसकी आलोचना नहीं हो सकती. इस पूरे मामले में अटॉर्नी जनरल की राय भी नहीं ली गई जो कि कानूनसंगत नहीं है. बता दें ​कि इस चिट्ठी पर रिटायर्ड जस्टिस रूमा पाल, रिटायर्ड जस्टिस आफताब आलम, रिटायर्ड जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी, रिटायर्ड जस्टिस जीएस सिंघवी, रिटायर्ड जस्टिस मदन बी लोकुर और रिटायर्ड जस्टिस गोपाला गौड़ा समेत 13 रिटायर्ड जस्टिस और 166 रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट, शिक्षाविदों और मशहूर शख्सियतों के नाम मय दस्तखत दर्ज हैं.

क्या है पूरा मामला
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने वकील प्रशांत भूषण को न्यायपालिका को लेकर किए गए दो ट्वीट के मामले में अवमानना का दोषी करार दिया गया है. अब 20 अगस्त को इस मामले में सुनवाई के बाद सजा की मियाद तय होगी. प्रशांत भूषण ने प्रधान न्यायाधीश (CJI) एसए बोबडे और सुप्रीम कोर्ट के 4 पूर्व जजों को लेकर ये टिप्पणी की थी, जिस पर कोर्ट ने स्वत:संज्ञान लेते हुए इसे अदालत की अवमानना माना था. इस मामले की सुनवाई के दौरान प्रशांत भूषण ने कहा था कि ट्वीट भले ही अप्रिय लगे, लेकिन अवमानना नहीं है. उन्होंने कहा था कि वे ट्वीट न्यायाधीशों के खिलाफ उनके व्यक्तिगत स्तर पर आचरण को लेकर थे और वे न्याय प्रशासन में बाधा उत्पन्न नहीं करते.