पिछले कुछ माह से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) कृषि जगत में बहस का बड़ा मुद्दा बना हुआ है. खासतौर पर तब से जब से कृषि क्षेत्र में सुधार के नाम पर नए अध्यादेश आए हैं. जून के पहले सप्ताह में कृषि क्षेत्र के व्यापक सुधारों का एलान करते हुए मोदी सरकार ने एग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्योरेंस एंड फार्म सर्विसेस ऑर्डिनेंस (Agreement On Price Assurance and Farm Services Ordinance, 2020) को लागू कर दिया था. दावा था कि यह किसानों को उचित मूल्य दिलाने के लिए है. दूसरी ओर खेती-किसानी के कई जानकार और अर्थशास्त्री कह रहे हैं कि नई बाजार व्यवस्था में सरकार बिना कहे ही धीरे-धीरे एमएसपी वाली व्यवस्था से बाहर निकल जाएगी. क्योंकि निजी क्षेत्र के लिए एमएसपी पर खरीद करना अनिवार्य नहीं किया गया है.
अब भी कई राज्यों में सरकारी मंडी (Mandi) में ही सरेआम केंद्र सरकार द्वारा तय की गई एमएसपी के आधे दाम पर खरीद हो रही है. खासतौर पर बिहार और मध्य प्रदेश में. इन दोनों प्रदेशों में मक्का और मूंग किसान इसके लिए खासे परेशान रहे हैं. उन्हें अपनी उपज औने-पौने दाम पर व्यापारियों को बेचनी पड़ी है. ऐसे में अब एमएसपी को किसानों (Farmers) का लीगल राइट घोषित करने की मांग हो रही है.
इस मसले को उठाने में कृषि अर्थशास्त्री देविंदर शर्मा सबसे आगे हैं. अब उनके साथ खाद्य और कृषि संगठन में चीफ टेक्निकल एडवाइजर रहे प्रो. रामचेत चौधरी जैसे कई कृषि वैज्ञानिक और अर्थशास्त्री जुड़ गए हैं. जून में लाए गए अपने कृषि अध्यादेश पर मोदी सरकार दावा कर रही है कि इससे किसानों को अच्छा दाम मिलेगा. क्योंकि उनके लिए मंडी और बाजार की सारी बाधाएं खत्म कर दी गईं हैं. किसान कहीं भी फसल बेच सकते हैं.
सरकार के इस दावे पर देविंदर शर्मा कहते हैं कि जब हर कोई इतना कह रहा है कि कृषि बाजार निजी क्षेत्र के लिए खोलने से किसानों को अधिक कीमत मिलेगी तो एमएसपी को किसानों के लिए कानूनी अधिकार क्यों नहीं बना देते? इसमें सरकार को क्या दिक्कत है. सरकार इसके लिए एक ऑर्डिनेंस ले आए. एमएसपी से कम पर खरीदने वालों को जेल भेजने का प्रावधान हो. एमएसपी के नीचे व्यापार करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.
…तो फिर इतने बुरे क्यों हैं किसानों के हालात
देविंदर शर्मा का कहना है कि शांता कुमार समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि महज 6 फीसदी किसानों को ही एमएसपी का लाभ मिलता है. यानी 94 फीसदी किसान मार्केट पर डिपेंड हैं. जाहिर है कि अगर मार्केट इतनी अच्छी होती तो किसान की ये दुर्दशा नहीं होती. 2016 के इकोनॉमिक सर्वे के अनुसार देश के 17 राज्यों में किसानों की सालाना आय सिर्फ 20 हजार रुपये है. यानी 1700 रुपये महीने से भी कम. ये आधे भारत का सच है.
एमएसपी पर कितनी खरीद?
इस समय यूपी में एमएसपी पर 7 फीसदी और राजस्थान में 4 परसेंट ही खरीद होती है. बिहार भी इस मामले पर निचले पायदान पर है. एमएसपी पर सबसे ज्यादा 87 फीसदी पंजाब में और 80 फीसदी के आसपास खरीद हरियाणा में होती है. इसलिए एमएसपी को किसानों का लीगल राइट बनाना जरूरी है.
एमएसपी को लीगल राइट बनाने से क्या होगा?
मशहूर राइस साइंटिस्ट प्रो. रामचेत चौधरी कहते हैं कि यदि सरकार एमएसपी को लीगल राइट नहीं घोषित करती है तो यह माना जाएगा कि मंडी से बाहर की खरीद व्यवस्था में किसानों को उचित दाम नहीं मिल पाएगा. यदि सरकार यह दावा कर रही है कि किसानों को अच्छा दाम मिलेगा तो उसे एमएसपी को लीगल राइट बनाने से कोई परहेज नहीं होना चाहिए. सभी उत्पादों का मुनाफे के साथ दाम तय हो. एमएसपी उनका कानूनी अधिकार बना दिया जाए तो किसानों को उनकी मेहनत के हिसाब से पैसा मिलेगा और वे समृद्ध बन सकते हैं.
फैक्ट्री का सामान एमआरपी पर, किसान को एमएसपी भी नहीं
प्रो. चौधरी का कहना है कि सरकार किसानों की उपज के दाम को मार्केट फोर्सेज के हवाले कर देती है. उसे अपनी उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price) भी नहीं मिलता. जबकि फैक्ट्री प्रोडक्ट मैक्सीमम (Maximum Retail Price) पर बिकता है. उसका दाम सरकार तय नहीं करती. अपने प्रोडक्ट पर फैक्ट्री वाला खुद मनमाना दाम लगाकर बेचता है. किसान अपनी खेती में इस्तेमाल होने वाले इनपुट को मैक्सीमम प्राइस पर खरीदता है और अपने उत्पाद को मिनिमन पर भी बेच नहीं पाता.