नई दिल्ली. 15 राज्यों में 7235 परिवारों (Family) पर किए गये त्वरित जरूरतों (Rapid Need Assessment) के सर्वे के मुताबिक कोरोना वायरस महामारी (Coronavirs Pandemic) के प्रसार के बीच करीब 62% घरों में बच्चों की पढ़ाई (Education) रुक गई है. इन त्वरित जरूरतों की जानकारी का सर्वे बाल अधिकारों (Children Rights) के लिए काम करने वाले NGO, सेव द चिल्ड्रेन (Save the children) ने लक्षित लाभार्थियों की चुनौतियों, प्राथमिकताओं और कोरोना वायरस के प्रभाव को समझने के लिए किया था. यह सर्वेक्षण 7 जून से 30 जून, 2020 के बीच किया गया था.
कम से कम 7235 घरों (Households) ने इस सर्वे (Survey) में भाग लिया. भारत के उत्तरी इलाके (North Area) के 3827 परिवारों को इस सर्वेक्षण में शामिल किया गया. जबकि दक्षिण के 556 गांव इस सर्वेक्षण में शामिल रहे. वहीं पूर्वी इलाके के 1722 घर इस सर्वेक्षण में शामिल थे, जबकि पश्चिमी इलाके (West Area) के 1130 घर इसमें शामिल हुए.
सर्वे में शामिल परिवारों के हर 5 में 3 बच्चों की रुकी पढ़ाई
इस आकलन में पाया गया है कि जिन परिवारों को इस सर्वे में शामिल किया गया था, उनके हर 5 में से तीन बच्चों/ करीब 62% बच्चों ने लॉकडाउन के दौरान पढ़ाई रोक दी. इस मामले में सबसे बुरी स्थिति उत्तरी भारत की रही, जहां पर 64% ब्च्चों ने इस दौरान पढ़ाई रोक दी. वहीं सबसे सर्वे में सबसे अच्छी स्थिति में आने के बाद भी यहां करीब आधे यानि 48% बच्चों ने स्कूली पढ़ाई रोक दी.
लगभग आधे बच्चों को नहीं मिल रहा है मिड डे मील
इस आकलन पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से फिलहाल कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई है. मध्याह्न भोजन (मिड डे मील- MDM) के बारे में सर्वे में सामने आया कि करीब हर पांच में से दो घरों के बच्चों को यह नहीं दिया जा रहा था.
पूरे देश में पश्चिम भारत में सर्वाधिक 52%, उत्तर भारत में 39% , दक्षिण भारत में 38% और पूर्वी भारत में सबसे कम 28% ने कहा कि उन्हें बच्चों के लिए मध्याह्न भोजन नहीं मिल रहा है. आकलन में यह भी पाया गया कि 40 प्रतिशत लोग पर्याप्त भोजन नहीं मुहैया करा पा रहे हैं और 10 में से आठ परिवारों ने आय में कमी होने की बात बतायी.
“बच्चे न सिर्फ शिक्षा से वंचित बल्कि उन्हें खाने को भी नहीं मिल पा रहा”
‘सेव द चिल्ड्रेन’ (इंडिया) के ‘प्रोग्राम एंड पॉलिसी इम्पैक्ट’ निदेशक, अनिंदित रॉय चौधरी ने पीटीआई-भाषा से कहा कि रिपोर्ट की मुख्य बात यह है कि बच्चों के बड़े हिस्से को शिक्षा के मामले में किसी भी प्रकार का समर्थन नहीं मिल रहा है