दवाइयों को लेकर राज्य औषधि प्रशासन विभाग की जांच रिपोर्ट ने चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। भास्कर के पास ड्रग कंट्रोलर की वह रिपोर्ट है, जिसके मुताबिक पिछले ढाई साल में छत्तीसगढ़ में 3 दवाएं सीधे नकली मिलीं, और 80 अमानक पाई गईं यानी इसका मरीज पर असर नहीं के बराबर था।
इनमें पेनकिलर, एंटीबायोटिक, शुगर की दवा, सेनिटाइजर और आयोडिन लोशन प्रमुख रूप से शामिल हैं। जैसे-इंदौर में बनी पेनकिलर डायक्लोफेनिक सोडियम पर कोटिंग नहीं था। यह आत में जाकर घुलती तब असर होता, लेकिन उससे पहले पेट में ही घुलकर खत्म हो गई।
यहीं बनी शुगर की दवा मेटामार्फिन पेट में घुली ही नहीं, जबकि शुगर की टेबलेट तुरंत घुलनी चाहिए। यही नहीं, अमानक पाई गई अधिकांश दवाइयां बाहर की हैं, ठीक उस तरह जैसे अन्य राज्यों के दवा निर्माताओं ने छत्तीसगढ़ को अमानक दवाइयां खपाने वाला डंपिंग यार्ड समझा हो।
छत्तीसगढ़ में 15 हजार से ज्यादा दुकानों से दवाइयां बेची जा रही हैं। बाजार में कारोबार करीब 500 करोड़ रुपए महीने का है। सरकारी खरीदी अलग है।
स्टेट ड्रग कंट्रोलर की रिपोर्ट के मुताबिक अभी प्रदेश की ड्रग लेबोरेट्री में दवाइयों के 1100 सैंपल हैं जिन्हें जांच रहे हैं। जो अमानक निकल गई हैं, उनमें अमृतसर (पंजाब) में बनी एंटीबायोटिक टेबलेट टिनाजाॅल-500 एमजी भी है, जिसमें कंटेट केवल 192 एमजी यानी 38 प्रतिशत ही निकला। अर्थात यह दवाई या तो असर ही नहीं करेगी, या फिर जरूरत से एक-तिहाई ही।
इसी तरह, कोरोना काल की दूसरी लहर में बिकी फेविमैक्स-200 चूने की गोली पाई गई थी। कोरोना के दौर में ही सबसे बड़ा खेल सेनिटाइजर में हुआ। इसमें एथेनॉल होना चाहिए, ताकि वायरस मर सकें। लेकिन टेस्ट में मैथेनॉल पाया गया, जो वायरस को नहीं मार सकता, बल्कि इससे स्किन कैंसर का खतरा हो जाता है।
रायपुर में इसी साल बड़ी मात्रा में नकली ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन मिले, इनमें कंपनी का लेवल तक नहीं था। यह इंजेक्शन गाय के दूध बढ़ाने के लिए इस्तेमाल होते हैं लेकिन अवैध घोषित हैं। सिर्फ मार्केट ही नहीं, सरकारी खरीदी में भी दवाइयां नकली मिली हैं।
जैसे, दवा कार्पोरेशन ने पायोडिन आयोडिन खरीदी थी, जो जांच में नकली पाई गई। इसका इस्तेमाल एंटीसेप्टिक के रूप में होता है। खास बात यह है कि कार्पोरेशन ने ही जांच करवाई थी, जिसमें यह नकली मिली। ये बतौर उदाहरण कुछ दवाएं हैं।
मशीनें बता देती हैं दवा का हाल
इनके साथ-साथ बाकी दवाइयां किस तरह अमानक साबित हुई हैं, इसे लेकर भास्कर ने लेबोरेट्री में पदस्थ सीनियर साइंटिस्ट से बात की तो उन्होंने बताया कि अलग-अलग टेस्ट से पता चल जाता है। जैसे, लेबोरेट्री की मशीन डिजोल्यूशन टेस्ट एप्रेटर्स में दवा ठीक वैसे ही काम करती है, जैसे हमारे पेट में जाने पर।
इसी जांच से पता चला कि एंटीबायोटिक कम एमजी वाली थी, शुगर की दवा घुली नहीं या आयोडीन लोशन में आयोडीन नहीं के बराबर मिला। रायपुर में पदस्थ ड्रग इंस्पेक्टर नीरज साहू और परमानंद वर्मा ने बताया कि विभाग के निर्देश पर दवाइयों के रैंडम सैंपल लेकर जांच होती रहती है, लेकिन कई बार शिकायत पर भी दवा जब्त कर जांच करवा लेते हैं। ज्यादातर ऐसे मामलों में दवाइयां जांच में अमानक या नकली निकली हैं।
नकली पर भी एफआईआर नहीं
ड्रग कंट्रोलर केडी कुंजाम ने बताया कि पिछले दो साल में ड्रग एंड कॉस्मेट्सिक एक्ट में 196 केस दर्ज हुए। इसमें 192 कोर्ट के समने पेश हुए। 10 मामलों में सजा और जुर्माना हुआ। हालांकि एक्ट में एफआईआर का प्रावधान नहीं है। हालांकि स्टेट ड्रग टेस्ट लैब में पेंडेंसी भी नकली-अमानक दवाइयों के निर्माता और कारोबारियों पर सख्ती नहीं होने की वजह है।
एक्सप्लेनर: ऐसी ज्यादातर दवाइयां हिमाचल, गुजरात समेत 5 राज्यों से
अहम सवाल यह है कि अमानक दवाइयां कहां से आ रही हैं? भास्कर ने इसके लिए फॉर्मा फील्ड से जुड़े दो दर्जन से ज्यादा मेडिकल रिप्रजेंटेटिव्स से बात की। इनके मुताबिक हर महीने राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय कंपनियों से 8000 प्रकार की दवाएं छत्तीसगढ़ में आ रही हैं।
यह कारोबार 400 करोड़ रुपए महीने का है। अधिकां। दवाइयां हिमाचल प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश के निर्माताओं की हैं। हिमाचल प्रदेश के बद्दी से सबसे ज्यादा दवाइयां आती हैं, क्योंकि वह दवा हब है। भास्कर ने यहां पदस्थ ड्रग इंस्पेक्टर लवली ठाकुर से संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि बद्दी की दवा कंपनियों के नाम का दुरुपयोग कर देशभर में अमानक या नकली दवाइयां बिक रही हैं।
इस तरह होता है फर्जीवाड़ा
निर्माता अन्य कंपनियों से दवा बनाकर अपनी कंपनी का नाम लिखकर बाजार में बेचते हैं। ये डुप्लीकेसी कहलाती है।
दवा जिसमें कोई कंटेंट ही न हो, इसे नकली (स्फ्यूरियस) माना जाता है। राज्य में 2 साल में ऐसी 2 दवा पकड़ी गईं।
दवा में मॉलिक्यूल प्रिंटेड मात्रा से कम रहता है। ऐसा टेबलेट और सिरप में ज्यादा होता है। इसे ही मिस ब्रांड कहते हैं।
(नोट- जैसा राज्य के ड्रग इंस्पेक्टरों ने कोर्ट में दायर केसेज के आधार पर बताया)
नहीं पहचान सकते
नकली दवाइयों की पहचान किस तरह की जा सकती है, इसके लिए एसीआई में कॉर्डियक सर्जरी के एचओडी डॉ. केके साहू, रायपुर में दवा विक्रेता लोकेश साहू, फॉर्मासिस्ट राहुल वर्मा ने बताया कि दवा की जांच का लैब टेस्ट के अलावा कोई विकल्प नहीं हैं। बारकोड सिस्टम लागू हुआ है, जिसके जरिए सिर्फ 320 प्रकार दवा की पूरी जानकारी मोबाइल पर देखी जा सकती है।
ब्लैकलिस्ट कर रहे हैं
जिन कंपनियों की दवाइयां नकली या अमानक मिलीं, उन्हें ब्लैकलिस्ट कर रहे हैं। मामले कोर्ट में पेश किए जा रहे हैं, सजा भी हो रही है। लोग सूचनाएं दें तो विभाग त्वरित जांच और कार्रवाई करेगा।
टीएस सिंहदेव, स्वास्थ्य मंत्री-छत्तीसगढ़
जो दवाएं अमानक या नकली पाई जा रही हैं, उनकी जानकारी सार्वजनिक की जानी चाहिए, ताकि लोगों को पता हो।
डॉ. महेश सिन्हा, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष-आईएमए
मल्टीनेशनल कंपनियां क्वालिटी मेंटेन करती हैं। टेस्ट के बाद दवा भेजती हैं। सैंपलिंग से हर दवा की जांच मुमकिन नहीं।
अविनाश अग्रवाल, अध्यक्ष-ड्रगिस्ट एंड केमिस्ट एसोसिएशन