ये तस्वीर मंगलवार रात को बस्तर दशहरा में मावली माता की डोली और दंतेश्वरी माता के छत्र के स्वागत में किए गए मावली परघाव विधान की है। कलेक्टर चंदन कुमार के अनुसार इस दौरान जिया डेरा से राजमहल के सामने तक करीब डेढ़ किलोमीटर तक 1 लाख से ज्यादा भक्त माई के स्वागत में मौजूद रहे।
बस्तर में करीब 600 साल पुरानी परंपरानुसार के बस्तर दशहरा में शामिल होने के लिए दंतेश्वरी माई को विनय पत्रिका सौंपी जाती है। अष्टमी की रात माई की डोली दंतेवाड़ा से जगदलपुर स्थित जियाडेरा पहुंचती है। जिसे नवमी तिथि की शाम को आतिशबाजी और बाजे गाजे के साथ परघाया जाता है, जिसे मावली परघाव कहते हैं। इसके बाद माईजी डोली मंदिर में रखा जाता है। जबकि छत्र को जिया डेरा लाया जाता है।
कर्नाटक के मलवल्य गांव की देवी हैं मावली माता
मावली देवी कर्नाटक के मलवल्य गांव की देवी हैं। इन्हें छिंदक नागवंशी राजा बस्तर में 9वीं से 14वीं शताब्दी के दौरान अपने शासनकाल में यहां लाए। इसके बाद चालुक्य राजा अन्नम देव ने जब बस्तर में अपना नया राज्य स्थापित किया, तब उन्होंने देवी मावली को भी अपनी कुलदेवी के रूप में मान्यता दी।