प्रदेश में सरकारी खर्च पर यानी स्पॉन्सरशिप पर मेडिकल एजुकेशन में जमकर गड़बड़ी हो रही है। ग्रामीण क्षेत्र में पदस्थ डॉक्टरों को सरकारी कोटे के तहत पढ़ाई करने का मौका नहीं मिल रहा है। पिछले छह साल में प्रदेश के 250 से अधिक सरकारी डॉक्टरों को स्पॉन्सरशिप के तहत पढ़ने का मौका मिला, इनमें से 225 शहरी क्षेत्र के हैं। हर साल चिकित्सा शिक्षा संचालनालय और स्वास्थ्य विभाग की ओर से 50 डॉक्टरों को सरकारी खर्च पर उच्च चिकित्सा हासिल करने के लिए स्पॉन्सरशिप दी जाती है।
नियमानुसार, पोस्ट एमबीबीएस डिप्लोमा, एमएस, पीजी या डीएम जैसी कोर्स के लिए सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर को पांच साल तक काम करना जरूरी होता है। विशेष परिस्थितियों में तीन साल तक नौकरी करने वालों को भी स्पॉन्सरशिप दी जाती है। इस योजना का उद्देश्य प्रदेश में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी दूर करना है। सरकारी खर्च पर ऐसी बीमारियों जो प्रदेश के लिए चुनौती है, उनमें स्पेशलाइजेशन या सुपरस्पेशलाइजेशन करवाया जाता है।
गांवों में विशेषज्ञों की कमी
पिछले 6 सालों में प्रदेश में 250 से अधिक सरकारी सेवारत डॉक्टरों को उच्च शिक्षा के लिए स्पॉन्सरशिप मिली है। पड़ताल में सामने आया कि 90 फीसदी से अधिक स्पॉन्सरशिप केवल शहरी क्षेत्र के अस्पतालों के पदस्थ डॉक्टर या मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाने वाले प्राध्यापकों को ही मिली है।
उसमें भी सिफारिश का बड़ा खेल चल रहा है। इससे ग्रामीण इलाकों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी बनी हुई है। प्रदेश में विशेषज्ञ डॉक्टरों के कुल 1,586 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से अभी भी 1,276 खाली पड़े हैं। पढ़ाई के लिए नौकरी छोड़ी राजधानी रायपुर के निजी अस्पताल में काम करने वाले कुछ डॉक्टरों ने बताया कि उन्होंने पांच साल तक सरकारी सिस्टम में बतौर डॉक्टर सेवाएं दी।
उसके बाद जब स्पॉन्सरशिप पर पीजी या डीएम करने के लिए आवेदन दिया तो उन्हें मंजूरी नहीं दी गई। इसमें किडनी, हार्ट जैसी बीमारियों के डॉक्टर भी शामिल हैं। वहीं खुद के खर्च पर उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए उनसे इस्तीफा तक ले लिया गया। बाद में इस तरह से पीजी या डीएम करने के बाद डॉक्टर सरकारी सिस्टम की जगह निजी अस्पताल में चले गए। जानकारों के मुताबिक स्पॉन्सरशिप में सिफारिश सिस्टम हावी है।
सरकारी स्पेशलिस्ट
कुल पद -1586
नियमित – 290
संविदा – 310
बॉण्ड पर – 13
विशेषज्ञों के खाली पद – 1277
स्पॉन्सरशिप यानी…नीट-पीजी में कम अंक के बाद भी प्रवेश
छत्तीसगढ़ समेत सभी राज्यों के लिए स्पॉन्सरशिप कोटे की सीटें तय हैं। ऐसे में सरकारी सेवारत डॉक्टरों को नीट पीजी या दूसरी प्रतियोगी परीक्षा में कम अंक आने के बावजूद कोटे की सीट पर आसानी से प्रवेश मिल जाता है। डिप्लोमा कोर्स की न्यूनतम फीस से लेकर सुपरस्पेशलिटी कोर्स की पढ़ाई की फीस 50 लाख रुपए से अधिक होती है। सरकारी संस्थानों में इन कोर्स की पढ़ाई न्यूनतम या बहुत कम में पूरी हो जाती है। वहीं सरकारी डॉक्टर के तौर पर मिलने वाली सैलरी भी पढ़ाई के दौरान जारी रहती है।
वहीं कोर्स के बाद नौकरी भी पहले से जमी रहती है। इसमें प्रतिनियुक्ति पर नियुक्त अधिकारी या कर्मचारी को इसकी पात्रता नहीं होती है। वहीं स्पॉन्सरशिप लेने के लिए कम से कम पांच साल और विशेष परिस्थितियों में तीन साल तक न्यूनतम सरकारी सेवा में होना जरूरी है। बीते 22 साल में पहली बार ऐसा मामला आया है, जिसमें चार महीने की नौकरी में ही सरकारी स्पॉन्सरशिप की मंजूरी दी गई है।
स्पॉन्सरशिप से मेडिकल एजुकेशन
हर साल औसतन चयन 50 डॉक्टर
बीते 6 साल में चयन 250 से अधिक
शहरी क्षेत्रों के डॉक्टर 225 से अधिक
ग्रामीण क्षेत्रों के डॉक्टर 25 से कम
जांच करवा रहे हैं: मंत्री
डीएमई कार्यालय से प्राप्त आवेदनों पर ही स्पॉन्सरशिप दी जाती है। ग्रामीण इलाकों के डॉक्टरों को स्पॉन्सरशिप क्यों नहीं मिल रही है, इसकी भी जांच करवाएंगे। अफसर के बेटे के मामले की भी जांच करवा रहे हैं। -टीएस सिंहदेव, स्वास्थ्य मंत्री.
शासन का निर्णय: डीएमई
स्पॉन्सरशिप एजुकेशन में चुनने का निर्णय शासन की ओर से किया जाता है। स्पॉन्सरशिप के लिए सभी आवेदनों में विशेष या सामान्य परिस्थितियों के जो नियम हैं, वही लागू किए जाएंगे।
-डॉ. विष्णु दत्त, डीएमई