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अमृत महोत्सव पर स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों का दर्द:पूछा- क्या हमें आजाद भारत में भी अच्छी शिक्षा, रोजगार और सम्मान नहीं मिलेगा

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देश में आजादी के 75वें जश्न की धूम है। इस धूम के पीछे वो नाम गुम हैं जिन्होंने देश को आजाद कराने में अपना अहम योगदान दिया। ऐसे ही नामों को याद करने उनके महत्व को समझने रायपुर में दो दिवसीय स्वतंत्रता सेनानी परिवार राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन रायपुर में किया गया। ये कार्यक्रम रायपुर के गुढ़ियारी स्थित मारुति मंगलम भवन में हुआ।

यहां देशभर से जुटे स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों ने आज की परिस्थिति पर बात की। स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी परिवार समिति के राष्ट्रीय महासचिव जितेंद्र रघुवंशी ने कार्यक्रम में अपने संबोधन में कहा कि आज कई ऐसे सेनानी है देश में जिनके घर वाले मजदूरी करके रिक्शा चलाकर रोजी कमा रहे हैं। आजादी के दीवानों ने अपना घर-द्वार स्वतंत्रता के आंदोलनों में लगा दिया। क्यों उनके परिजनों को सम्मान से जीने का हक नहीं।

उन्होंने बताया कि आजादी के संघर्ष में सबसे अधिक त्रासदी झेलने वाले सेनानी परिवारों की पीड़ा को कोई राजनैतिक दल समझे। रघुवंशी ने आगे कहा हम कुछ चंद जायज मांगें हमेशा सरकारों के सामने रखते आ रहे हैं कि दिल्ली में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्मारक की स्थापना हो, संवैधानिक संस्थाओं में सेनानी परिवारों का मनोनयन, सेनानी उत्तराधिकारी परिवार आयोग का गठन, राष्ट्रीय परिवार का दर्जा दिया जाना, आर्थिक सहायता का प्रावधान, पाठ्यक्रम में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की जीवनी को शामिल किया जाना चाहिए।

पिता देश के लिए लड़े, बेटे हक के लिए लड़ते बूढ़े हुए
कार्यक्रम में देशभर से आए सेनानी परिजनों ने कहा कि क्या आजाद भारत में भी हमें कुछ बुनियादी सुविधाएं नहीं मिलनी चाहिए। पाटन से आए 75 साल के सेनानी पुत्र छबि चंद्राकर ने बताया कि मेरे पिता शिव दयाल चंद्राकर ने आजादी की लड़ाई लड़ी जेल गए अंग्रेजों के जुल्म सहे। आज मैं खेती किसानी करता हूं, रोजगार में, स्वास्थ्य सुविधाओं में कहीं हमें कोई प्राथमिकता नहीं मिलती। कई बार सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटे कहीं कोई हमारी नहीं सुनता।

आरक्षण मिले
दुर्ग से अशोक ताम्रकार ने कहा सेनानियों का परिवार पीड़ित है कोई सुविधा हमें केंद्र या राज्य सरकार से नहीं मिलती। जायज हक नहीं मिलता, हमारे पिताजी उदय प्रसाद उदय देश के लिए लड़ते हुए मर गए । सेनानी परिजनों को रोजगार, स्वास्थ्य में प्राथमिकता मिलनी चाहिए। मैंने हजारों पत्र लिखे कोई जवाब नहीं मिलता। अफसर भी ध्यान नहीं देते। हमें भी आरक्षण की सुविधा मिलना चाहिए, स्थानीय नौकरियों में कोई प्राथमिकता नहीं है। ये हमारे लिए दुर्भाग्य है।

अंग्रेजों के थाने पर फहराया था तिरंगा
1932 में पुरे भारत में सविनय अवज्ञा आन्दोलन का द्वितीय चरण प्रारम्भ किया गया। बिजनौर में रहने वाले 112 साल के स्वामी लेखराज ने तब इस आंदोलन में हिस्सा लिया। उन्होंने बताया कि तब अंग्रेजों के थाने में जाकर छत पर मैंने तिरंगा फहराया दिया था। मुझे बहुत मारा पैर काटने की कोशिश की गई, तब भारत में कोई ऐसा डॉक्टर नहीं था जो टांके लगा सके, तकलीफ में कई दिन बिताने पड़े। बाद में फिर से आजादी के आंदोलनों में सक्रिय रहा। आयोजकों ने बताया कि इस उम्र में भी रायपुर के कार्यक्रम में शामिल होने लेखराज ट्रेन से पहुंचे। ट्रेन कैंसिल हुई दूसरी ट्रेन का टिकट नहीं था, टीसी ने इनके साथ बदसलूकी की मगर सबकुछ झेलते हुए सेनानियों के कार्यक्रम में लेखराज पहुंच ही गए क्योंकि उन्हें अपने संगी साथियों से मिलना था।

अंग्रेजों के थाने पर फहराया था तिरंगा
1932 में पुरे भारत में सविनय अवज्ञा आन्दोलन का द्वितीय चरण प्रारम्भ किया गया। बिजनौर में रहने वाले 112 साल के स्वामी लेखराज ने तब इस आंदोलन में हिस्सा लिया। उन्होंने बताया कि तब अंग्रेजों के थाने में जाकर छत पर मैंने तिरंगा फहराया दिया था। मुझे बहुत मारा पैर काटने की कोशिश की गई, तब भारत में कोई ऐसा डॉक्टर नहीं था जो टांके लगा सके, तकलीफ में कई दिन बिताने पड़े। बाद में फिर से आजादी के आंदोलनों में सक्रिय रहा। आयोजकों ने बताया कि इस उम्र में भी रायपुर के कार्यक्रम में शामिल होने लेखराज ट्रेन से पहुंचे। ट्रेन कैंसिल हुई दूसरी ट्रेन का टिकट नहीं था, टीसी ने इनके साथ बदसलूकी की मगर सबकुछ झेलते हुए सेनानियों के कार्यक्रम में लेखराज पहुंच ही गए क्योंकि उन्हें अपने संगी साथियों से मिलना था।