रामानुजगंज! मेडिकल दुकान के संचालन के लिए फार्मासिस्ट को ही लायसेंस दिया जाता है लायसेंस तो फार्मासिस्ट बनवा लेते है मगर मेडिकल दुकान पर खुद न बैठकर दुसरो से दवाईया बिकवाते है। बलरामपुर जिला मुख्यालय में जिम्मेदार अधिकारियों के नाक के नीचे मेडिकल दुकान संचालकों द्वारा खुलेआम स्वास्थ्य विभाग के नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रहीं हैं। अधिकारियों द्वारा किसी प्रकार की जांच पड़ताल नहीं करने की वजह से मेडिकल दुकान संचालकों द्वारा लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। जिला मुख्यालय एवं आसपास के क्षेत्रों में दर्जनों की संख्या में मेडिकल दुकान संचालित हैं। इन मेडिकल दुकान संचालकों के लाइसेंस किसी दूसरे व्यक्ति के नाम पर है, लेकिन दुकान पर कोई दूसरा व्यक्ति बैठता है जिसके पर लाइसेंस है जिसने फार्मेसी की है और जिसे दवाई संबंधित जानकारियां हैं वह दुकान में बहुत कम या बैठता ही नहीं है। अपने सह मित्र अथवा कर्मचारी को दुकान में बैठाता है। इस दौरान कोई मरीज यदि डॉक्टर की पर्ची लेकर उक्त मेडिकल स्टोर में दवाई लेने जाता है तो उसे दुकान में काम करने वाले कर्मचारी द्वारा मरीज को क्या बीमारी है पूछकर या अंदाज पर अथवा मोबाइल से दुकान संचालक मालिक से पूछ कर दवाइयां दी जातीं हैं। इस दौरान कई बार यह देखने को मिला कि मरीजों को गलत दवाइयां मिल गई। इस तरह की खेल जिला मुख्यालय तथा आसपास के क्षेत्रों में धड़ल्ले से चल रहा है। लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों के द्वारा जांच पड़ताल नहीं की गई। जिला बनने से पहले जहां 1 से 2 मेडिकल दुकाने थे वहीं अब दर्जनों की संख्या में मेडिकल दुकान खुल गए हैं। खास बात तो यह है कि कई ऐसे मेडिकल दुकान भी है जिसके मालिक ने खुद फार्मेसी नहीं की है, बल्कि किसी और के नाम पर लाइसेंस है और दुकान का संचालन हो रहा है। कुछ दिनों पहले तातापानी क्षेत्र में टाइफाइड से पीड़ित एक महिला मरीज के लिए उसके पति द्वारा मेडिकल दुकान से इंजेक्शन खरीद कर बिना डॉक्टर से दिखाए लगवा दिया। इससे उस महिला की हालत खराब होने लगी। आनन-फानन में परिजनों द्वारा गाड़ी बुक कर जिला चिकित्सालय के इमरजेंसी वार्ड में भर्ती कराया गया। यहां चिकित्सकों द्वारा उपचार उपरांत उसकी हालत में सुधार हुआ। डॉक्टर ने कहा भी कि बिना डॉक्टरी सलाह के मेडिकल दुकान से दवाएं नहीं लेनी चाहिए। यह कोई नया मामला नहीं है बल्कि ऐसे कई मामले आए गए होंगे। इसके बाद भी स्वास्थ्य विभाग द्वारा उचित कार्यवाही नहीं की जाती है।
मेडिकल स्टोर खोलने ये है नियम – मेडिकल स्टोर खोलने के लिए जिसके नाम से दुकान खोलना है, उसे फार्मेसी करना अनिवार्य है। इसके बाद किसी भी सरकारी या प्राइवेट अस्पतालों से 3 या 6 माह का अनुभव प्राप्त अनिवार्य है। राज्य फार्मेसी काउंसिलिंग विभाग में मेडिकल कोर्स उपरांत अपना पंजीयन कराना अनिवार्य है। इसके बाद स्टेट ड्रग कंट्रोलर विभाग से द लाइसेंस प्रदान कर दुकान खोलने व की अनुमति ली जाती है। साथ में दुकान संचालक को दवाई संबंधित पूरा अनुभव भी होना अनिवार्य है। लेकिन जिले भर में संचालित गिने चुने ही ऐसे मेडिकल दुकान होंगे जहां नियमों को फॉलो कर दुकान खोला गया होगा। अन्यथा सभी दुकान भगवान भरोसे संचालित हो रहे हैं।
कई दुकान स्वास्थ्यकर्मी का – रामानुजगंज एवं अन्य जगहों में कई मेडिकल की दुकाने सरकारी कर्मचारी जो स्वास्थ्य विभाग से जुड़े हुए है जो सरकारी नौकरी करने के बाद मेडिकल दुकानों में बैठकर दुकान का संचालन करते दिख जायेंगे मगर दुकान का वास्तविक लायसेंसधारी फार्मासिस्ट नजर नही आयेंगे। कुछ सरकारी कर्मचारी सरकारी नौकरी में रहते हुए मेडिकल स्टोर का लायसेंस नही ले सकते इसलिए अन्य के नाम पर लायसेंस लेकर निजी कर्मचारी द्वारा दवाई बेचते है । रामानुजगंज व अन्य जगहों में भी इस तरह का गोरखधंधा सरेआम चल रहा है, मगर इनके जाँच पड़ताल करने वाले अधिकारी नही जानते है या जानबूझकर जानना नही चाहते है वजह समझने के लिए ज्यादा दिमाग लगाने की जरुरत है क्या ।