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पेरेंट्स की याचिका, बड़ों को छूट तो स्‍कूलों में बच्‍चे क्‍यों पहनें मास्‍क? स्‍वास्‍थ्‍य विशेषज्ञों ने दी ये सलाह

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देशभर में दो साल से कोरोना (Corona) के चलते स्‍कूलों से दूर रहे बच्‍चे इस साल नए सत्र से स्‍कूल जाने लगे हैं. 1 अप्रैल 2022 से स्‍कूल खुलने के बाद सभी राज्‍यों में बच्‍चे ऑफलाइन क्‍लासेज में जा रहे हैं. इस बार भले ही कोरोना के मामले कम हैं लेकिन 12 साल से कम उम्र के बच्‍चों को वैक्‍सीन न लगने के कारण ज्‍यादातर स्‍कूलों में बच्‍चों को मास्‍क (Mask) लगाने के आदेश दिए गए हैं. स्‍कूलों की ओर से कहा गया है कि 12 साल से कम उम्र के बच्‍चे मास्‍क पहनकर ही स्‍कूल आएं. हालांकि दिल्‍ली में मास्‍क को जरूरी करने के खिलाफ एलजी को पत्र भी लिखा है और मास्‍क को वैकल्पिक करने की मांग की है.

इसके अलावा दिल्ली के स्कूलों में मास्क (Mask) को वैकल्पिक करने की मांग करते हुए दिल्‍ली स्थित वकील तान्‍या और स्‍टार्टअप फाउंडर सिमरन ने change.org पर एक ऑनलाइन याचिका भी डाली है. जिसमें सभी परिजनों से जुड़ने के लिए कहा गया है. इनमें बताया गया है कि जब महाराष्‍ट्र और दिल्‍ली में नौजवानों और अन्‍य लोगों के लिए मास्‍क को जरूरी नहीं रखा गया है और न पहनने पर जुर्माना लगाने का प्रावधान भी हटा दिया है तो बच्‍चों पर मास्‍क को क्‍यों थोपा जा रहा है. मार्च 2020 में मास्क समझ में आया क्योंकि कोविड एक खतरनाक बीमारी थी लेकिन यूनिसेफ से लेकर डब्‍ल्‍यूचओ भी कह चुके हैं कि बच्‍चों में कोविड संक्रमण (Corona Infection) की गंभीरता कम होती है तो बच्‍चों को सामान्‍य जीवन क्‍यों नहीं जीने दिया जा रहा.

दिल्‍ली एम्‍स के पूर्व निदेशक बोले…
अभिभावकों की इस मांग पर न्‍यूज18 हिंदी ने स्‍वास्‍थ्‍य विशेषज्ञों से बात की है. दिल्‍ली स्थित ऑल इंडिया इंस्‍टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के पूर्व निदेशक डॉ. एमसी मिश्र कहते हैं, ‘भारत में कोरोना के कम होते मामले ये बता रहे हैं कि भारत में हुए संक्रमण कम हो रहा है. इसी के चलते कुछ राज्‍यों में मास्‍क को लेकर लगाई गई पाबंदियां हटा ली हैं और मास्‍क को वैकल्पिक कर दिया है. जब मास्‍क जरूरी था तभी लोग बिना मास्‍क के घूमते थे, अब जब वैकल्पिक है तो मास्‍क लगाएंगे इसे लेकर संशय है. कोरोना के मामले भले ही कम हैं लेकिन मैं नहीं मानता हूं कि ये सही समय है कि एहतियात के सभी तरीके छोड़ दिए जाएं. मुझे लगता है कि मास्‍क पहनना चाहिए. खासतौर पर भीड़भाड़ वाली उस जगह पर जहां वेंटीलेशन ठीक नहीं है. ध्‍यान देने वाली बात है कि मास्‍क वायरस के ट्रांसमिशन या फैलाव को रोकता है.’

वे आगे कहते हैं कि रहा सवाल ये कि स्‍कूल जाने वाले बच्‍चों के लिए मास्‍क कितना जरूरी है, तो बच्‍चों के लिए मास्‍क पहनना थोड़ा असुविधाजनक है, उन्‍हें मास्‍क पहनने की आदत नहीं है तो अभिभावक तो पूछेंगे कि मास्‍क क्‍यों पहनें, लेकिन मैं थोड़ा पारंपरिक हूं, इसलिए कह रहा हूं कि बच्‍चे बहुत जल्‍दी संक्रमण को पकड़ लेते हैं. हालांकि ये अलग बात है कि उनमें लक्षण कम या नहीं रहते हैं लेकिन अगर कोई बच्‍चा संक्रमित होता है और भले ही वह असिम्‍टोमैटिक है लेकिन वह परिवार के किसी भी बुजुर्ग को जो किसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं या बिना वैक्‍सीन लिए हुए किसी सदस्‍य को वायरस दे सकता है. इतना ही नहीं किसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे बच्‍चों को भी अपनी सेहत के प्रति सावधानी बरतने की जरूरत है. ‘
एक जगह पर दो नियम सही नहीं
वहीं दिल्‍ली एमसीडी में पूर्व नोडल ऑफिसर डॉ. सतपाल कहते हैं कि भारत में सब कुछ खुल चुका है. वहीं स्‍कूल भी खुल गए हैं. एक तरफ राज्‍य मास्‍क को वैकल्पिक कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर उन्‍हीं राज्‍यों में स्‍कूलों में बच्‍चों को मास्‍क पहनने के लिए बाध्‍य किया जा रहा है. अब एक जगह पर दो नियम तो नहीं चल सकते हैं. या तो ऐसा करें कि अगर बच्‍चों के लिए मास्‍क जरूरी है तो स्‍कूल में सभी बड़े, शिक्षक, स्‍टाफ भी मास्‍क पहनें. तभी पूरी तरह सुरक्षा हो सकती है. वरना सिर्फ बच्‍चों के लिए मास्‍क को अनिवार्य करना ठीक नहीं है.

हालांकि स्‍वास्‍थ्‍य के लिहाज से देखें तो बच्‍चों को मास्‍क पहनने के दो फायदे होंगे कि एक तो वे कोरोना वायरस के संक्रमण से बचेंगे और वायु प्रदूषण से भी बचेंगे. वहीं इसके कुछ नुकसान ये हो सकते हैं कि बच्‍चों को सांस लेने में दिक्‍कतें हो सकती हैं. बच्‍चों के खेलने-कूदने पर भी असर पड़ेगा. जो बच्‍चे फेफड़े की समस्‍या से जूझ रहे हैं तो उनको भी परेशानियां होंगी.