Home देश जलवायु परिवर्तन को महामारी की तरह लेना जरूरी, बीमारी जैसी उभर रही...

जलवायु परिवर्तन को महामारी की तरह लेना जरूरी, बीमारी जैसी उभर रही ग्लोबल वार्मिंग

12
0

आपने वो कहानी तो सुनी होगी, जिसमें घाट पर पैर फिसल जाने की वजह से रानी की कमर टूट जाती है, जब दोषी की ढुंढाई मचती है, तो सबसे पहले पानी डालने वाले पर इल्जाम मढ़ा जाता है, वो दोष मसक (चमड़े का बर्तन जिसमें पानी भरा जाता है) बनाने वाले पर लगा देता है, मसक बनाने वाला दोष बकरी बेचने वाला पर लगाता है, तो बकरी बेचने वाला बकरी पर यह कह कर दोष लगाता है कि वो उसे इतना खाने को देता था लेकिन वो खाती ही नहीं थी. इस तरह राजा इस निर्णय पर पहुंचता है कि बकरी ही दोषी है और उसे फांसी पर चढ़ा दिया जाता है.

हाल ही में पेरिस में जलवायु परिवर्तन (Climate Change) पर शिखर सम्मेलन हुआ, जिसका नतीजा कुछ इसी दोष मढ़ने की तरह किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सका. और नौ दिन चले अढ़ाई कोस की तर्ज पर सारे देश अपने-अपने घर लौट गए. इस पूरे मामले में इस बार भी फांसी बकरी (आम जनता) को ही चढ़नी है. कनाडा में ऐसा ही एक मामला सामने आया है. जो संभवत: पहला ऐसा मामला जिसमें एक बुजुर्ग महिला के सरदर्द और डिहाइड्रेशन (पानी की कमी) की शिकायत के लिए जलवायु परिवर्तन पर इल्जाम लगाया है. चिकित्सक का कहना है कि जलवायु संकट पर दोष लगाना ठीक वैसा ही जैसे किसी कुल्हाड़ी को कुल्हाड़ी कहना. तमाम तरह के सबूत और बता रहे हैं कि लोगों के बीमार होने की वजह जलवायु परिवर्तन है और दिक्कत यह है कि हम लक्षणों का इलाज कर रहे हैं, बीमारी का नहीं क्योंकि हमने जलवायु परिवर्तन या ग्लोबल वार्मिंग को अभी तक बीमारी के तौर पर लेना शुरू नहीं किया है.