भारत में जल्द ही अमेरिका के एक्सटन बायोसाइंस की सेकेंड जेनरेशन की कोविड-19 वैक्सीन का क्लीनिकल ट्रायल (Covid-19 Vaccine Clinical Trial) शुरू किया जाएगा. दाम में कम होने के साथ-साथ इसका उत्पादन भी जल्दी हो सकता है. इम्यूनिटी घटने पर इसके डोज को दोबारा दिया जा सकता है और इसे रखने के लिए रेफ्रिजरेटर की भी ज़रूरत नहीं होती है. वैक्सीन के सैम्पल क्लिनिकल जांच से पहले सुरक्षा के मद्देनज़र जांच के लिए कसौली में सेंट्रल ड्रग्स लैबोरेटरी (सीडीएल) में भेजा गया है.
वैक्सीन को शुरुआत में AKS-452 नाम दिया गया है, यह 25 डिग्री तापमान में कम-से-कम 6 महीने रह सकती है और 37 डिग्री तापमान पर एक महीने तक इसकी क्षमता नहीं जाती है. एक वरिष्ठ शासकीय अधिकारी ने न्यूज18 को बताया कि सैम्पल को कसौली के सीडीएल में भेजा गया है और उम्मीद है कि एक महीने में देश के 12 जगह पर इसका ट्रायल शुरू किया जाएगा. भारत में फेज 2 और फेज तीन के तहत इसका कुल सैम्पल साइज 1600 लोग रखे गए हैं. इन ट्रायल्स को पूरा होने में करीब एक साल लग जाएगा.
अधिकारी आगे बताते हैं कि भारत को शायद घरेलू इस्तेमाल के लिए वैक्सीन की ज़रूरत नहीं हो, लेकिन वो वैक्सीन का निर्माण गरीब और मध्यम आय वाले देशों में वैक्सीन की पहुंच को सुलभ बनाने के लिए कर सकता है. वैक्सीन का ट्रायल महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, राजस्थान और गुजरात के अस्पताल से शुरू हो सकता है.
संग्रहण की समस्या वाले देशों के लिए वरदान साबित होगी वैक्सीन
वैक्सीन अगर असरदार साबित होती है, तो ऐसे देश जहां संग्रहण की समस्या है, वहां के लिए यह वरदान साबित होगी. कंपनी का दावा है कि कमरे के तापमान पर वैक्सीन 6 महीने तक स्थिर रह सकती है. साथ ही केन्या जैसे गर्म देशों के लिए ये आदर्श साबित होगी क्योंकि बगैर रेफ्रीजेरेटर के यह एक महीने तक रह सकती है. इतना ही नहीं, इसे आसानी से लाया, ले जाया जा सकता है.
‘कम दाम वाली एंटीबॉडी निर्माण तकनीक का इस्तेमाल’
कंपनी का कहना है कि वैक्सीन के निर्माण के लिए कम दाम वाली एंटीबॉडी निर्माण तकनीक का इस्तेमाल किया गया है, इस तरह दुनिया में जहां इसकी इकाई मौजूद है वहां पर सिंगल प्रोडक्शन लाइन से हर साल 100 करोड़ डोज तैयार किये जा सकते है. बताते चलें की फर्स्ट जेनरेशन वैक्सीन उन वैक्सीन को कहते हैं जो कोरोना वायरस की मौलिक स्ट्रेन पर काम करती है जैसे कोविशील्ड, कोवैक्सीन और फाइजर, बायोएनटेक, मॉडर्ना, जॉनसन एंड जॉनसन के उत्पाद.
जिस वैक्सीन में सुधार जैसे साइड इफेक्ट कम होना, दुनिया की ज़रूरत के हिसाब से अनुकूलन, ऐसी क्षमता होती है, उस वैक्सीन को सेकेंड और थर्ड जेनरेशन की वैक्सीन कहा जाता है. कंपनी के मुताबिक वैक्सीन के एक 90μg का इन्जेक्शन 100 फीसद सीरोकन्वर्जन देता है, साथ ही इसका निर्माण भी आसान है, जिससे यह साबित होता है कि सेकेंड जेनरेशन की वैक्सीन में दुनिया भर की आबादी को सुरक्षित रखने की क्षमता है.