इन दिनों पाकिस्तान (Pakistan) में आईएसआई चीफ (ISI Chief) की नियुक्ति पर बवाल मचा है. इसके दो मुख्य किरदार प्रधानमंत्री इमरान खान (Pakistan Prime Minister Imran Khan) और कभी उनके खास रहे आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा (General Qamar Javed Bajwa) अब आमने-सामने आ चुके हैं. बाजवा की मुहर लगने के 11 दिन बाद भी इमरान ने नए ISI चीफ नदीम अंजुम को उनकी नियुक्ति को हरी झंडी नहीं दी है. इससे आर्मी चीफ बाजवा इमरान खान को आंखें दिखा रहे हैं. हैरत की बात है ये है कि इमरान ने ही बाजवा का सर्विस एक्टेंशन बढ़ाया था. अब पाकिस्तानी मीडिया के हलकों और राजनीति को समझने वाले कह रहे हैं कि जल्द ही मुल्क में ‘मार्शल लॉ’ लग सकता है. सरकार को हटाकर आर्मी टेकओवर कर सकती है. इसके पीछे उनके तर्क इतिहास में छिपे हुए हैं.
22 साल पहले 12 अक्टूबर 1999 को आर्मी चीफ जनरल परवेज मुशर्रफ ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का तख्तापलट कर सत्ता पर कब्जा किया था. कहा जाता है कि उस वक्त भी दोनों के बीच आईएसआई के मुखिया की नियुक्ति को लेकर मतभेद शुरू हुए थे. तख्तापलट के दौरान पीएम नवाज शरीफ और ISI चीफ लेफ्टिनेंट जनरल जियाउद्दीन बट को भी गिरफ्तार किया गया था. यह पाकिस्तान में पहला मौका था जब किसी आईएसआई चीफ को भी गिरफ्तार किया गया.
ISI चीफ और नवाज शरीफ में खून का रिश्ता: पाक आर्मी
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पाक सेना में उस वक्त मजाक उड़ाया जाता था कि नवाज शरीफ का जनरल ज़ियाउद्दीन बट से खून का रिश्ता है. इसलिए उन्होंने भरोसेमंद आईएसआई पद पर उन्हें बिठाया. वहीं, मुशर्रफ आने खास लेफ्टिनेंट जनरल अजीज खान को खुफिया एजेंसी का मुखिया बनाने चाहते थे. लेकिन नवाज के एकतरफा फैसले पर मुशर्रफ खून का घूंट पीकर रह गए और उन्हें सबक सिखाने के लिए प्लान बनाने लगे. करीब एक साल बाद उन्होंने अपना बदला ले भी लिया.
बट पर भरोसा नहीं करते थे मुशर्रफ
मुशर्रफ ने अपनी किताब ‘इन द लाइन ऑफ फायर’ में आईएसआई चीफ जनरल जियाउद्दीन पर भरोसा नहीं करते थे. पहले दिन से उन्होंने आईएसआई से महत्वपूर्ण फाइलें और योजनाएं वापस ले लीं थी. कश्मीर और अफगानिस्तान से जुड़ी जिम्मेदारी तत्कालीन चीफ ऑफ जनरल स्टाफ, लेफ्टिनेंट जनरल अजीज को सौंप दी थीं.
क्यों होता रहा है इस पर विवाद?
पाकिस्तान के इतिहास में यह पहला मौका नहीं था, जब आईएसआई चीफ को लेकर पीएम-आर्मी चीफ भिड़े हों. इससेे पहले जनरल जिया उल हक और उस वक्त के प्रधानमंत्रियों में ऐसा ही विवाद गहरा चुका है. रिपोर्ट बताती है कि यह समस्या क्यों खड़ी होती है, क्योंकि आईएसआई प्रमुख की नियुक्ति के बारे में ऐसा कोई कानून नहीं है, जो यह निर्धारित करता हो कि यह नियुक्ति प्रधानमंत्री को करनी है या सेना प्रमुख को. सामान्य प्रक्रिया के अनुसार, प्रधानमंत्री डीजी ISI को चुनते हैं. लेकिन इससे चुनाव में आर्मी चीफ की भूमिका को भी नकारा नहीं जा सकता.
कल आज और कल
रिपोर्ट बताती है कि इमरान, फैज हमीद (ISI Chief Faiz Hameed) के साथ काम करने में ज्यादा सहज हैं इसलिए वह इस पर पर उन्हें बनाए रखना चाहते हैं. पाकिस्तान की स्थापना के बाद, 1949 में प्रधानमंत्री के आदेश पर आईएसआई को एक संघीय एजेंसी के तौर पर बनाया गया था. उस समय से यह परंपरा चली आ रही है कि डीजी आईएसआई की नियुक्ति प्रधानमंत्री करते हैं. इतिहास बताता है कि सैन्य नेतृत्व किस तरह आईएसआई मुख्यालय में पीएम के करीबी कर्मचारियों को नज़रअंदाज़ करते आए हैं.
क्या है वर्तमान विवाद?
ISI के वर्तमान चीफ हैं जनरल फैज हमीद ने 2018 के चुनाव में जमकर धांधली की और इमरान को वजीर-ए-आजम बनवा दिया था. शुरुआत में इमरान ने जनरल बाजवा को तीन साल का एक्सटेंशन देकर नवाजा और फैज पीछे रह गए. एक्सटेंशन के बाद आर्मी चीफ बाजवा अगले साल अक्टूबर में रिटायर हो रहे हैं. इमरान चाहते हैं कि जनरल फैज ही अगले चीफ बनें. इसके पहले वो ISI सुप्रीमो बने रहें. बाजवा इससे इत्तेफाक नहीं रखते. वे जनरल अंजुम को ISI की कमान सौंपना चाहते हैं. तनातनी की असली वजह यही है.