बलरामपुर(मेरुवाणी)! जिले में पदस्थ वन मंडलाधिकरी (DFO) की मनमानी और उनके द्वारा सरकारी रूपयो के दुरुपयोग का किस्सा अब जगजाहिर हो चुका है.. आय दिन अखबारों और टीव्ही की सुर्खियां बटोरने वाले डीएफओ पर इस बार केन्द्र सरकार द्वारा दी गई करोडो की राशि डकारने का आरोप लगा है… केन्द्र सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ के बलरामपुर वन विभाग को लेंटाना उन्नमूलन के लिए 4 करोड 40 लाख रुपए की राशि दी गई थी.. जिसमे हुए सत् प्रतिशत घोटाले को लेकर बीते मानसून सत्र में प्रदेश के सत्ताधारी दल के ही विधायक ने विधानसभा के मानसून सत्र में सवाल उठाया था.. जिसके बाद वन मंत्री मोहम्मद अखबर ने मामले की जांच के लिए सरगुजा वन वृत के मुख्य वन संरक्षक को कमेटी बनाकर जांच के निर्देश दिए थे.. जिसके बाद जांच कमेटी भी बनी और कथित रूप से जांच भी हुई…. पर डेढ महीने से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी ना ही जांच रिपोर्ट सामने आई है.. और ना ही दोषियों पर कोई कार्यवाही हुई है.. जिसको लेकर मामले को जड़ से उठाने वाले अम्बिकापुर निवासी अभिजीत सिंह ने बलरामपुर थाने में डीएफओ के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने का आवेदन दिया है….
आरटीआई मे नहीं दे रहे हैं जानकारी- दरअसल अम्बिकापुर के रहने वाले अभिजीत सिंह को जनवरी माह में ये जानकारी लगी थी.. कि बलरामपुर वन मंडल में केन्द्र सरकार द्वारा बेटाना उन्नमूलन को लेकर 4 करोड़ से अधिक की राशि जारी की थी.. जिसके बाद विभाग के गोपनीय सूत्रों से मिली जानकारी के आधार पर उन्होंने 30 जनवरी 2021 को बलरामपुर वन मंडलाधिकारी कार्यालय में इस मद के राशि के उपयोग जानने के लिए सूचना का अधिकार के तहत तीन आवेदन पेश किया… जिसके पहले आवेदन में आवेदक ने जून 2020 से दिसंबर 2020 तक लेखा से संबंधित फार्म 14 की सत्यापित प्रतिलिपि और दूसरे आवेदन में इसी माह के बीच जारी धन आदेश के संधारित चेकड्रोन रजिस्टर की सत्यापित प्रतिलिपि की मांग की थी.. इसके साथ ही आवेदक ने इसी मद के लिए जो तीसरा आवेदन लगाया उसमें उन्होंने जून 2020 से दिसंबर 2020 के बीच परिक्षेत्र अधिकारी और सत्यापन के लिए प्राप्त प्रामणको को प्रति हस्ताक्षर एव सत्यापन पश्चात वन मंडल कार्यालय बलरामपुर को प्रेषित एव प्राप्त किए गए पत्रों की दिनांकित पावती की सत्यापित छाया प्रति की मांग की गई अपीलीय अधिकारी के निर्देश को DFO कार्यालय ने किया अनदेखा- बलरापुर वन मंडल में हुए करोड़ों के घोलमाल को लेकर लगाए ये तीनो आवेदन में वन मंडलाधिकारी कार्यालय के जन सूचना अधिकारी ने जवाब दिया कि “आपके दवारा मांगी गई जानकारी में मद का स्पष्ट उल्लेख नहीं होने के कारण जानकारी दिया जाना संभव नहीं है. इसलिए प्रकरण नस्तीबद्ध किया जाता है.”। इधर करोडो के घोटाले के सटीक जानकारी होने के कारण आवेदन अभिजीत सिंह ने मामले पर मुख्य वन संरक्षक कार्यालय अम्बिकापुर के जन सूचना अधिकारी के पास अपील की.. और वहां से अपीलीय अधिकारी ने बलरामपुर डीएफओ कार्यालय के पत्र लिखकर इस संबंध में जानकारी देने के निर्देश दिए… लेकिन उसके बाद भी बलरामपुर डीएफओ कार्यालय ने अपने वरिष्ठ कार्यालय के निर्देशों का पालन नहीं किया, और जब अपील के बाद भी जानकारी नहीं मिली तो फिर आवेदक ने राज्य सूचना अधिकारी से इस संबंध में अपील की है.. लेकिन आज दिनांक तक लेटाना उन्नमूलन के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिली है….
थक हार कर एफआईआर का आवदेक- जंगलों के रखरखाव के लिहाज से लेंटाना उन्नमूलन काफी कारगर हो सकता था.. लेकिन इसमें हुए घोटाले को लेकर जब आवेदक को सूचना के अधिकार के तहत कोई जानकारी नहीं मिल रही है.. तो फिर उन्होंने न्याय के लिए पुलिस का सहारा लिया है…. जानकारी के मुताबिक सूचना के अधिकार का अधिकार नहीं मिल पाने के बाद अभीजीत सिंह ने… 5 अक्टूबर 2021 को उक्त तीनो आरटीआई आवेदन के आधार के साथ कुछ प्रमाणिक दस्तावेजों के साथ बलरामपुर कोतवाली थाना में डीएफओ बलरामपुर के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने का आवेदन दिया गया… एफआईआर के लिए दिए आवेदन में श्री सिंह ने ये उल्लेख किया है कि वन मंडलाधिकारी बलरामपुर ने अपने आप को सदोश लाभ पहुंचाने एवं आदेवक को सदोश हानि पहुंचाने के लिए पद का दुरुपयोग कर स्वयं लाभ प्राप्त किया है.. तथ्यात्मक साक्ष्य दस्तावेजों के आधार पर जन सूचना अधिनियम में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 166 167, 420, 467, 468, 471 एवं 120 बी का उल्लंघन किया है. इसी आधार पर आवेदक ने तीनों प्रकरण में एफआईआर दर्ज करने की मांग की है… इसके जवाला FIR के लिए दिए आवेदन में ये भी उल्लेख है कि छत्तीसगढ़ सिविल सेवा आचरण नियम 1965 के नियम 3 का भी उल्लंघन है.. अत जन सूचना अधिकारी को दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 का लाभ भी नहीं मिल सकता है.
विवादों से पुराना रिश्ता- सत्ता पक्ष के विधायक और विभाग के मंत्री के संरक्षण में डीएफओ बनाए गए.. बलरामपुर डीएफओ और विवादो को
चोली दामन सा साथ रहा है… जानकारी के मुताबिक अपनी करतूतों के कारण वन अधिकारी लक्ष्मण सिंह एसडीओ रहते हुए नौकरी से हाथ धो बैठे थे.. जिसके बाद हाई कार्ट का निर्णय आया और वो एक बार से एसडीओ फारेस्ट के पद पर फिर से बहाल हो गए… लेकिन राज्य सरकार को चुनौती देने वाले इस मामले में छत्तीसगढ़ राज्य सरकार को वन अधिकारी लक्ष्मण सिंह के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना था.. पर राज्य सरकार ने ना जाने क्यो मामले में ढील देते हुए… लक्ष्णण सिंह को तौफा दे दिया गया.. और बलरामपुर डीएफओ बना दिया. इतना ही नहीं समाचार पत्रो से प्राप्त जानकारी के मुताबिक कोरिया जिले में एसडीओ रहते हुए लक्ष्मण सिंह ने एक सरकारी घर पर भी कब्जा बना लिया था.. जो कब्जा अब तक बरकरार है.. ऐसा नहीं कि लोकलाज के भय में इस अधिकारी ने वो बंगला खाली कर दिया हो.. बल्कि लक्ष्मण सिंह ने उस बंगले को रंग रोगन कराकर एक निजी बंगले की सकल दे दी है… खैर मौजूदा मामला लेंटाना उन्नमूलन के संबंध में जानकारी ना देने और कोरोडो के कथित घोटाले का है… ऐसे में वन मंत्री से लेकर वन अधिकारियों तक के चहेते और स्थानिय विधायक के कोषाध्यक्ष… डीएफओ बलरामपुर के खिलाफ पुलिस कोई कार्यवाही करती है या फिर सत्ता के दबाव में मामला ढाक के तीन पात हो जाएगा……. वही बलरामपुर पुलिस मामले में जांच के बाद कार्यवाही की बात कह रही है.. लेकिन कबतक जांच शुरू हो पाएगी …इसका जवाब पुलिस के पास भी नहीं है. लेकिन जिम्मेदार अधिकारी जांच का हवाला देकर एफआईआर दर्ज करने आश्वस्त कर रहे है!.