विश्व बेटी दिवस (International Daughter’s Day) खास तौर से बेटियों को समर्पित होता है जिसके माध्यम से माता-पिता अपने जीवन में बेटी होने पर अपने आप को आभारी मानते हैं. भारत जैसे देश में जहां आमतौर पर लड़कों को प्राथमिकता दी जाती है और कदम-कदम पर लड़कियों (Girls) को भेदभाव का सामना करना पड़ता है वहां इस तरह के दिवस उनके महत्व को स्थापित करने में काफी उपयोगी हो सकते हैं. यही वजह है कि इस दिन के माध्यम से यह संदेश दिया जाता है कि बेटियां भी बेटों के बराबर ही प्यार और देखभाल की हकदार हैं. अगर बेटियों को भी अवसर मिलें तो वे कामयाबी की इबारतें गढ़ सकती हैं.
महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ होने वाली हिंसा (Violence against Women) और भेदभाव को समाप्त करने के लिए काम करने वाली स्वयंसेवी संस्था ब्रेकथ्रू की सीईओ सोहिनी भट्टाचार्य का कहना है कि बेहद जरूरी है कि समाज लड़कियों का महत्व समझे. समाज में लिंग के आधार पर कोई भेदभाव या हिंसा ना हो. लड़कियों को भी अपने सपने जीने और खुद फैसले लेने की आजादी हो. वह भी बिना किसी डर के घर से बाहर उसी तरह निकल सके जिस तरह से लड़के निकलते हैं लेकिन यह होना इतना आसान नहीं रह गया है. देश में आंकड़े बताते हैं कि लड़कियों को जन्म से लेकर पढ़ाई, घर और बाहर भेदभाव का सामना करना पड़ता है. वहीं हाल ही में आई कई रिसर्च स्टडीज बताती हैं कि कोरोना के कारण बेटे-बेटियों के बीच किया जाने वाला फर्क और भी स्पष्ट रूप में सामने आया है.
सोहिनी आगे बताती है कि सरकार के तमाम प्रयासों के बाद भी नीति आयोग की 2020-21 की रिपोर्ट में जन्म के समय लिंगानुपात (Gender Ratio) पहले से और अधिक घटकर प्रति हजार लड़कों पर 899 लड़कियां ही गया है. वहीं राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के मुताबिक महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध (Crime against Women) के मामलों में भी 2018 की तुलना में 7 फीसदी की वृद्धि हुई है जो काफी चिंताजनक है. आंकड़े बताते हैं कि 2019 देश में प्रतिदिन बलात्कार (Rape) के औसतन 87 मामले दर्ज हुए.