Home छत्तीसगढ़ प्रकृति, पर्यावरण, पशुपालक और किसान के सर्वश्रेष्ठ हितैषी हैं गुबरैला:-किशोर राजपूत, ...

प्रकृति, पर्यावरण, पशुपालक और किसान के सर्वश्रेष्ठ हितैषी हैं गुबरैला:-किशोर राजपूत, नाम और रंग रूप में क्या रखा है? काम अच्छा होना चाहिए…

136
0

नवागढ़ (बेमेतरा)। अमर तिवारी “मेरूवाणी डाॅट इन”…

नगर पंचायत नवागढ़ के युवा किसान किशोर राजपूत ने बताया कि गुबरैला अर्थात डंग बीटल नाम का यह छोटा सा श्याम वर्ण कीट इस धरातल पर ना होता…
तो दुनिया का यह हरा भरा स्वरूप हमें दिखाई नहीं देता दुनिया शाकाहारी स्तनधारी जानवरों के मल अवशेष गोबर के ढेर में बसी हुई नजर आती है….
जिसमें जहरीली गैसे मच्छर मक्खियों का आतंक होता होता…..

भैंस हाथी ऊंट जैसे गोबर करने वाले जानवरों के गोबर को गुबरैला 24 से लेकर 48 घंटे में चट कर जाता है ठिकाने लगा देता है मिट्टी के लिए उपयोगी खाद में परिवर्तित कर देता है।
यदि गुबरैला ऐसा ना करें तो गोबर को 5 से 6 महीने लग जाते हैं प्राकृतिक तौर में डीकंपोज होने में| जंगली हो या पालतू सभी स्तनधारी पशुओं का परम हितेषी है गुबरैला सभी जंतुओं के गोबर का निपटारा करता है बगैर भेदभाव किए जानवरों का गोबर यदि खुले में पड़ा रहे तो जानवरों को काटने वाली सिलाई डांस मक्खी उसमें ठिकाना बना लेते हैं।

दूसरे कीट पतंग प्रजनन करते हैं लेकिन गुबरैला अपने परिश्रम कौशल से पशुओं के लिए हानिकारक कीटों के मंसूबे पर पानी फेर देता है

गोबर की गोलाकार रोलिंग बॉल गेंद बनाकर गुबरैला उसे जमीन में दफन कर देता है।
नर व मादा गुबरेला की ऐसी बोल की जमीन में लंबी श्रंखला बनाते हैं फिर उनमें मेटिंग कर अंडे देते हैं नन्ना गुबरेला उसी गोबर को खाकर पूरे वयस्क गुबरैला में तब्दील हो जाता है।
साथ ही गोबर को खाद में परिवर्तित कर मिट्टी के स्वस्थ और उन्नत बनाता है।

किशोर ने कहा कि वह जानवर जो भी वनस्पति खाते हैं उनके बीज अवशेष उनके गोबर में दिखाई पड़ते हैं… ऐसे में गुबरैला खाद निर्माण के साथ-साथ वृक्षों के बीजों को भी मिट्टी में गहराई में डाल देता है जिससे नवीन वृक्ष के अंकुरण की बुनियाद पड़ जाती है..गुबरैला कि इस परियोजना में उगने वाले वृक्ष स्वस्थ मिट्टी वातावरण का साथ पाकर बहुत तेजी से विकसित होते हैं| कितना परम उपकारी है गुबरेला साथ के साथ वृक्षारोपण भी करता रहता है| साहसी इतना अपने वजन के 1200गुना अधिक सामग्री को भी खींच लेता है… अपने आकार से 10 गुना अधिक गोबर की बॉल बना देता है…. मनुष्य के सामर्थ्य से इसकी तुलना यदि हम करें तो यह ठीक ऐसा ही है जैसे 70 किलो वजनी इंसान पांच-छह बस या ट्रक को अकेले ही खींचे| गोबर के देरी से होने वाले अपघटन के फल स्वरुप बनने वाली मीथेन आदि गैसों में कटौती भी गुबरैला करता है उसे जल्दी से खाकर| इकोसिस्टम में गुबरैला की उपस्थिति एक महत्वपूर्ण बायोइंडिकेटर के तौर पर ली जाती है….

जिस मैदान गोचर भूमि या खेत में गुबरैला मौजूद है वहां पर्यावरण की स्वच्छता स्वस्थता का गुबरैला सूचक होता है,

इकोलॉजी का यह कंसेप्ट भारत के ग्रामीण लोग हमारे पूर्वज बहुत पहले से ही जानते थे| भारत में जानवरों के गोबर को ईंधन के तौर पर कंडे उपले आदि निर्माण में प्रयोग किया जाता रहा है ग्रामीण क्षेत्र में अभी जारी है….
उत्तर भारत विशेषकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इन्हें पथनवारे कहा जाता है क्षेत्रीय शब्द है कुछ अन्य शब्द भी इसके लिए इस्तेमाल होते होंगे…
जहां समूह में गोबर डाला जाता है ईंधन आदि के लिए सुखाया जाता है यह स्थल गोचर भूमि के आसपास की होता था…..
पर्यावरण के लिए यह बहुत ही स्वास्थ्य वर्धक परंपरा थी….|

अमेरिका में प्रतिवर्ष बड़े-बड़े एनिमल फार्म में गोबर को निस्तारित करने में सालाना 380 मिलियन डॉलर अमेरिकी सरकार का खर्च बचता है गुबरैला के कारण

अफ्रीकी महाद्वीप में बहुत सी जनजातियों गुबरैला का बहुत ही सम्मान किया जाता है प्राचीन मिस्र में गुबरैला को देवता मानकर उसकी पूजा की जाती थी उन्होंने मंदिर भी बनाए थे| गुबरैला की एक अफ्रीकी प्रजाति तो अंधेरी रात में सुदूर आकाशगंगा चांद व नक्षत्र लोकों के प्रकाश से अपनी दिशा दूरी तय करती है|

डेनमार्क ऑस्ट्रेलिया न्यूजीलैंड के बड़े-बड़े एनिमल फार्म में गुबरैला को संरक्षण दिया जाता है

किशोर ने बताया कि विदेशों में गुबरैला जैसा मेहनती कीट बिना वेतन लिए हजारों हेक्टेयर फार्म की सफाई करता है गोबर को जमीन में पहुंचा कर खाद में परिवर्तित करता है हानिकारक फार्म एनिमल को नुकसान पहुंचाने वाले कीटो को नियंत्रित करता है पेस्ट कंट्रोल करता हैं ।
लेकिन इंसान कितना भी चतुर बन जाए अपने अशुभ क्रियाकलापों से वह परमपिता परमेश्वर के द्वारा नियुक्त इन सफाई कर्मचारियों के लिए संकट पैदा कर ही देता है कहीं जानबूझकर तो कहीं अनजाने में।

किशोर राजपूत ने इसका कारण बताया कि जानवरों में वेटरनरी मेडिसिन का इस्तेमाल होता है जिसका असर गोबर में आता है गोबर टॉक्सिक हो जाता है उससे गुबरैला भी प्रभावित होते हैं…
उनकी आबादी व स्वस्थ गंभीर तौर पर प्रभावित होता है| दुनिया भर के किसान व पशुपालकों का कोई संगठन दल सरकार हितेषी हो ना हो गुबरैला प्रत्येक मोर्चे पर पूरे अर्थों में उनका परम हितेषी है| बस शर्त केवल इतनी है

किसान व पशुपालक अपने हितेषी को समझ ले दुश्मनों को पहचान ले

आज सच में हमे अपने प्राकृतिक सफाई कर्मी को बचाने के लिए जैविक खेती को बढ़ावा देने की जरूरत है, जैविक खादों खेती से उत्पन्न आहार को पशुओं को खिलाने से उनकी भी स्वस्थ ठीक रहेगा तथा कीट पतंगें भी । हमारे देश के महान किसान मसीहा चौधरी छोटूराम ने कहा था
“भोले किसान दो बात समझ ले एक तो बोलना सीख ले, दूसरा दुश्मन पहचान ले और हां दुश्मन किसान के भेष में भी मौजूद हो सकता है।”

नवागढ़ बेमेतरा से अमर तिवारी की रिपोर्ट…