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150 साल से ज्यादा पुराना असम-मिजोरम का सीमा विवाद बार-बार क्यों भड़कता है.

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देश के पूर्वोत्तर के दो राज्यों असम और मिजोरम के बीच सीमा विवाद को लेकर हिंसा भड़कने से पांच पुलिसकर्मियों की मौत हो गई जबकि 50 से अधिक घायल हो गए. घायल होने वालों में एक पुलिस अधीक्षक भी शामिल हैं. इन दो राज्यों के बीच सीमा विवाद 150 साल पुराना है. इसे लेकर दोनों राज्यों में अक्सर विवाद होता रहा है. भारत के इतिहास में ये पहली बार हुआ कि सीमा विवाद को लेकर इतनी हिंसक स्थिति बनी और दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री तक आपस में ट्विटर पर भिड़ गए. सोशल मीडिया पर भी ये विवाद छाया रहा.

ये पूरा संघर्ष तब शुरू हुआ जब रविवार को दिन के 11.30 बजे कछार ज़िले के वैरंगते ऑटो रिक्शा स्टैंड के पास बने सीआरपीएफ़ पोस्ट में असम के 200 से ज़्यादा पुलिसकर्मी पहुंचे. इन लोगों ने मिज़ोरम पुलिस और स्थानीय लोगों पर बल प्रयोग किया. पुलिस के बल प्रयोग को देखते हुए जब स्थानीय लोग वहां जमा हुए तो उन पर पुलिस ने लाठी चार्ज और टियर गैस का इस्तेमाल किया. जब असम पुलिस ने ग्रेनेड फेंके और फ़ायरिंग की तो मिज़ोरम पुलिस ने शाम चार बजकर 50 मिनट पर फायरिंग की.

काफी पुराना है सीमा विवाद 
दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद तो रहा है, लेकिन दोनों राज्यों की पुलिस एक-दूसरे के सामने खड़े होकर गोलियां चलाने लगें, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. सीमा विवाद काफ़ी पुराना है. अलग-अलग जगहों से झड़प की ख़बरें आती रहती है, लेकिन ये इतना बड़ा विवाद हो जाएगा और फ़ायरिंग में पुलिसकर्मियों की मौत हो जाएगी, इसका अंदाज़ा शायद ही किसी को होगा.

150 साल पुरानी अधिसूचना है विवाद की जड़!
असम-मिज़ोरम के बीच यह विवाद 1875 की एक अधिसूचना से उपजा है, जो लुशाई पहाड़ियों को कछार के मैदानी इलाकों से अलग करता है.मिजोरम पड़ोसी राज्य असम के साथ 164.6 किलोमीटर की सीमा साझा करता है. मिज़ोरम पहले 1972 तक असम का ही हिस्सा था. यह लुशाई हिल्स नाम से असम का एक ज़िला हुआ करता था जिसका मुख्यालय आइजोल था.

वो हिस्सा जिस पर असम और मिजोरम दोनों दावा करते हैं
हालांकि जब मिजोरम लुशाई हिल्स से नाम से असम का हिस्सा था तब भी इसकी मिज़ो आबादी और लुशाई हिल्स का क्षेत्र निश्चित था. इसी क्षेत्र को 1875 में ब्रिटिश राज में चिन्हित किया गया था. मिज़ोरम की राज्य सरकार इसी के मुताबिक अपनी सीमा का दावा करती है, असम सरकार यह नहीं मानती है. असम सरकार 1933 में चिन्हित की गई सीमा के मुताबिक अपना दावा करती है. इन दोनों माप में काफ़ी अंतर है. विवाद की असली जड़ एक-दूसरे पर ओवरलैप 1318 वर्ग किलोमीटर का हिस्सा है, जिस पर दोनों सरकारें दावा छोड़ने को तैयार नहीं हैं.

हालांकि मिजोरम से जो रिपोर्ट्स आई हैं, उनका कहना है कि 1875 का नोटिफ़िकेशन बंगाल ईस्टर्न फ़्रंटियर रेगुलेशन (बीइएफ़आर) एक्ट, 1873 के तहत आया था, जबकि 1933 में जो नोटिफ़िकेशन आया उस वक़्त मिज़ो समुदाय के लोगों से सलाह मशविरा नहीं किया गया था, इसलिए समुदाय ने इस नोटिफ़िकेशन का विरोध किया था.

सीमा की स्थिति 
असम के साथ साझी की जाने वाली मिज़ोरम की सीमा पर उसके तीन ज़िले आइजोल, कोलासिब और ममित आते हैं. वहीं, इस सीमा पर असम के कछार, करीमगंज और हैलाकांदी ज़िले भी हैं. पिछले साल अक्टूबर में असम के कछार ज़िले के लैलापुर गांव के लोगों और मिज़ोरम के कोलासिब ज़िले के वैरेंगते के पास स्थानीय लोगों के बीच सीमा विवाद को लेकर हिंसक संघर्ष हुआ था, तब 08 लोग इसमें घायल हुए थे.

वैसे सीमा को लेकर असम का विवाद केवल मिज़ोरम नहीं बल्कि मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड से भी है. लेकिन बड़ा विवाद मिजोरम से ही है.

क्या इस विवाद के साथ राजनीति भी जुड़ी है
इस सीमा विवाद को सुलझाने की कोशिश 1955 से हो रही है. सीमा पर जब से लोगों के बसने की गति बढ़ी है, तब से ये विवाद भी ज्यादा हो गया. वैसे इस सीमा विवाद को इस बार राजनीति से भी जोड़कर देखा जा रहा है, क्योंकि असम में बीजेपी की सरकार है जबकि मिजोरम में ज़ोरामथांगा की मिजो नेशनल फ़्रंट की सरकार, हालांकि मिजो फ्रंट भी एनडीए का हिस्सा है. लेकिन ये कयास लग रहे हैं कि मिज़ोरम में दो साल बाद होने वाले चुनाव से पहले ही जोरामखथांगा एनडीए से अलग हो सकते हैं.

असम औऱ मिजोरम के बीच हाल में पहले वर्ष 2018 में सीमा विवाद हुआ और फिर अगस्त 2020 में ये फिर सतह पर आ गया. तब असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने गृहमंत्री अमित शाह को इस बारे में चिट्ठी लिखी थी. उन्होंने तब भी शाह से इस मामले में दखल देने की अपील की थी. लेकिन रह-रहकर अब ये विवाद दोनों राज्यों में बढ़ता हुआ ही लग रहा है.