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क्‍या है FCRA कानून और कोरोना काल में क्‍यों हो रही है इसमें ढिलाई की मांग? जानें हर अपडेट

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देश के जारी कोरोना से जंग के बीच लगातार विदेशों से मदद के हाथ आगे आती जा रही है, लेकिन पिछले साल FCRA कानून में संशोधन के बाद किसी Non register NGO को विदेशों से सीधे चंदा और मदद लेने में कानूनी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. अब देश के भीतर से इस बात की मांग उठने लगी है क‍ि महामारी के इस वक़्त में FCRA कानून को थोड़ा लचीला बनाना चाहिए, जिससे कोई भी साधारण व्यक्ति, गैर रजिस्टर NGO विदेशों से मिल रहे मेडिकल सहायता को ले सके.

देश के जाने माने चार्टर अकाउंटेंट विपिन अग्रवाल ने एक पिटीशन चलाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मांग की है कि इस कानून में थोड़ी नरमी लाई जाए. उन्होंने पीएम को लिखे पत्र में

कहा है कि इस महामारी के दौर में विदेशों से लगातार मदद की पेशकश की जा रही है, लेकिन गैर रजिस्टर एनजीओ अंतर्राष्ट्रीय निकायों से आवश्यक सहायता लेने में असमर्थ हैं क्योंकि इनमें से अधिकांश निकाय एफसीआरए के तहत पंजीकृत नहीं हैं, जिसके बिना उन्हें कोई दान या नकद राशि या योगदान नहीं मिल सकता है.

आपको बात दें क‍ि नरेंद्र मोदी सरकार से पिछले साल सितंबर में FCRA कानून में संशोधन कर विदेशों से मिल रहे चंदे के प्रावधान में कड़ाई कर दी है. नए FCRA कानून के मुताबिक, विदेशी अंशदान स्वीकार करने के लिए व्यक्तियों, संघों और कंपनियों को विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 (एफसीआरए) और विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2020 के अनुसार एफसीआरए प्रमाणपत्र होना आवश्यक है.

विपिन अग्रवाल ने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील की है कि इस समय और स्थिति की गंभीरता को देखते हुए, स्वास्थ्य सेवा और चिकित्सा में विदेशी योगदान के नियम को लचीला बनाया जाए. उन्होंने मांग कि है कि गैर-सरकारी संगठनों को एक सीमित अवधि के लिए एफसीआरए के तहत पंजीकरण की आवश्यकता के बिना चिकित्सा सहायता, सामग्री और आपूर्ति स्वीकार करने की अनुमति दी जाए.
FCRA को लेकर नासकॉम

नास्कॉम ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर विदेशी प्रतिबंध विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) मानदंडों में अस्थाई छूट देने और कोविड-19 की वैक्सीन आयात करने को उदार बनाने की मांग की है.

FCRA कानून का इतिहास

समय समय पर भारत सरकार ने देश में विदेशी सहायता के प्रवाह को कंट्रोल और नियमबद्ध करने का प्रयास किया है. सबसे पहले 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सरकार ने घरेलू राजनीति में विदेशी भागीदारी को सीमित करने के उद्देश्य से विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम को पारित किया था.

– 2010 में, विदेशी निवेश पर कुछ अंकुश लगाने के लिए कानून में संशोधन किया गया था.

– 2015 में, नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के एक साल बाद राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए फोर्ड फाउंडेशन सहित कुछ प्रमुख धार्मिक समूहों पर प्रतिबंधों को कड़ा कर दिया.

– पिछले साल सितंबर में भारत सरकार ने फिर से इस कानून में संशोधन लाकर विदेशों से मिल रहे चंदे को और कड़ा कर दिया.