सेंटर फॉर डेमोक्रेसी प्लूरेलिज़्म एंड ह्यूमन राइट्स ने तिब्बत सहित पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, मलेशिया, इंडोनेशिया और श्रीलंका की मानवाधिकार को लेकर एक रिपोर्ट जारी की है. रिपोर्ट को सभी देशों में नागरिक समानता, उनकी गरिमा, न्याय और लोकतंत्र को आधार में रख कर तैयार किया गया है. यह रिपोर्ट शिक्षाविद, अधिवक्ता, न्यायाधीश, मीडियाकर्मी और अनुसंधानकर्ताओं के एक समूह ने तैयार किया है.
सेंटर फॉर डेमोक्रेसी प्लूरेलिज़्म एंड ह्यूमन राइट्स की रिपोर्ट में पाकिस्तान में मानवाधिकार की स्थिति पर चिंता व्यक्त की गई है. रिपोर्ट के अनुसार वहां धार्मिक अल्पसंख्यको के साथ-साथ अल्पसंख्यक शिया और अहमदिया की स्थिति भी काफ़ी ख़राब है. वहां धारा 298 बी-2 के मुताबिक अहमदिया मुसलमानों द्वारा अज़ान शब्द का उपयोग भी अपराध है.
धार्मिक अल्पसंख्यक को डराया जाता है
इसके साथ साथ पाकिस्तान का कानूनी ढांचा भी अंतरराष्ट्रीय नागरिक और राजनीतिक अधिकारियों के अनुरूप नहीं है. वहां धार्मिक अल्पसंख्यकों- हिंदू, सिख और ईसाई धर्म की युवा महिलाओं के साथ अपहरण, बलात्कार, जबरन धर्मपरिवर्तन आदि घटनाएं काफी है. इसके साथ साथ धार्मिक अल्पसंख्यक को डराया और धमकाया भी जाता है.
बांग्लादेश में हर साल पलायन को मजूर लाखों लोग
बांग्लादेश में भी मानवाधिकार और धार्मिक अल्पसंख्यको की स्थिति भी बेहतर नहीं है. ढाका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अबुल बरकत की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 4 दशकों में 230612 लोग प्रत्येक वर्ष पलायन को मजबूर हो रहे है जिसका औसत 632 लोग प्रतिदिन है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर इसी गति के पलायन वहा होता रहा तो 25 साल बाद वहां कोई भी हिंदू नहीं रहेगा. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 1975 में वहां संविधान संशोधित के मध्यम से सेकुलरिज्म शब्द को हटाकर कुरान की पंक्तियों को रखा गया और 1988 में इस्लाम को देश का धर्म घोषित कर दिया गया.
साथ ही चटगांव पर्वतीय क्षेत्र के डेमोग्राफी को भी योजनाबद्ध तरीके से बदल दिया गया. 1951 में 90 फ़ीसदी लोग यहाँ बौद्ध थे जो 2011 में घटकर55 फीसदी रह गया.
तिब्बत के हालात भी जानिए
रिपोर्ट में कहा गया है कि विभिन्न प्रतिबंधों के माध्यम से चीन तिब्बत में मानवाधिकार की स्थिति को छुपाने की कोशिश करता रहा है. इसके साथ साथ चीन तिब्बत की सामाजिक, धार्मिक, संस्कृतिक और भाषाई पहचान भी खत्म करने की कोशिश कर रहा है.
अफगानिस्तान की नीति पर जाहिर की चिंता
सेंटर फॉर डेमोक्रेसी प्लूरेलिज़्म एंड ह्यूमन राइट्स की रिपोर्ट के अनुसार अफगानिस्तान में भी मानवाधिकार और अल्पसंख्यको के प्रति विभेदकारी नीति पर चिंता व्यक्त की गई है. अफगानिस्तान के संविधान के अनुसार कोई मुस्लिम व्यक्ति की देश का राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री बन सकता है. 1970 की जनसंख्या के अनुसार वहां 700000 हिंदू और सिख थे जो कि हालिया दिनों में सिमटकर सिर्फ 200 हिंदू और सिख परिवार रहा गया है.
भूटान में सजातीय अल्पसंख्यकों के अधिकारों का हनन
सेंटर फॉर डेमोक्रेसी प्लूरेलिज़्म एंड ह्यूमन राइट्स ने श्रीलंका में भी मानवाधिकार और धार्मिक अल्पसंख्यको की स्थिति पर चिंता जताई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 26 साल तक चले गृह युद्ध मे 100000 लोगों की जान गई और 20,000 तमिल गायब हो गए. सेंटर फॉर डेमोक्रेसी प्लूरेलिज़्म एंड ह्यूमन राइट्स की रिपोर्ट के अनुसार मलेशिया में भूमिपुत्र के पक्ष में विभेदकारी कानून है. यह सजातीय अल्पसंख्यको के भी अधिकारों का हनन हो रहा है.
सेंटर फॉर डेमोक्रेसी प्लूरेलिज़्म एंड ह्यूमन राइट्स की रिपोर्ट के अनुसार इंडोनेशिया में भी पिछले कुछ वर्षों में धार्मिक कट्टरता और असहिष्णुता बढ़ी है. यहां सिर्फ 6 देशों को ही पहचान दी गई है. 2002 में बाली में हुए धमाके में भी देश के ही एक बड़े धार्मिक इस्लामिक नेता का नाम आया था. 2012 में बालीनुर्गा हिंदुओं पर हमला सहित कई घटनाएं धार्मिक अल्पसंख्यको के ख़िलाफ़ देखने को मिली है.