भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम समझौते के बीच सवाल यह उठ रहे हैं कि आखिर यह नरमी आई कैसे? एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पिछले तीन महीनों में एनएसए अजीत डोभाल और पाकिस्तानी सेना व राजनयिक नेतृत्व बीच पर्दे के पीछे बातचीत चल रही थी.
भारत और पाकिस्तान (India Pakistan) द्वारा पिछले हफ्ते संघर्षविराम के नियमों पर सहमति जताने वाली घोषणा के बाद दोनों पड़ोसी मुल्क नई दिल्ली और इस्लामाबाद में अपने संबंधित उच्चायुक्तों को मिशन में बहाल करने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं. CNN-News18 को यह जानकारी सूत्रों ने दी है. फरवरी 2019 में पुलवामा आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान ने अपने उच्चायुक्तों को वापस बुला लिया था और दोनों मिशन तब से ही नेतृत्वहीन हैं.
इससे पहले साल 2002 में ऑपरेशन पराक्रम के दौरान दोनों देशों ने अपने उच्चायुक्तों को वापस बुलाया था. अंततः तत्कालीन जनरल मुशर्रफ और तब भारत के प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी के बीच 2003 में संघर्षविराम समझौता हुआ. इसके बाद साल 2004 में सार्क समिट के लिए भूतपूर्व पीएम वाजपेयी पाकिस्तान भी गए थे.
क्या इस बार भी होगा ऐसा?
कुछ ऐसा ही इस बार भी हो सकता है. हालांकि सूत्रों ने कहा है कि इस साल के अंत में सार्क सम्मेलन के लिए पीएम मोदी के इस्लामाबाद की यात्रा करने की संभावना ‘दूर -दूर तक नहीं’ है. हालांकि हमेशा राजनीति ही नहीं बल्कि कई बार डिप्लोमेसी भी काम आती है.
सवाल यह उठ रहे हैं कि आखिर यह नरमी आई कैसे? अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि पिछले तीन महीनों में एनएसए अजीत डोभाल और पाकिस्तानी सिविल और आर्मी नेतृत्व के बीच पर्दे के पीछे बातचीत हुई थी. दोनों देशों के बैठकों में खाड़ी से किसी तीसरे देश के भी बैठक में होने की संभावना जाहिर की गई. किसी भी पक्ष ने इस दावे से इनकार नहीं किया.
भारत के लिए संघर्ष विराम की घोषणा अच्छी खबर थी. LAC पर चीन के साथ डिसएंगेजमेंट की घोषणा के ठीक बाद संघर्षविराम के पालन की घोषणा हुई. भारत-पाक के बीच हुई समझौते के ठीक बाद विदेश मंत्री जयशंकर ने अपने चीनी समकक्ष वांग यी के साथ एक घंटे से अधिक की टेलीफोन पर बातचीत की. वे भारत-चीन के विदेश मंत्रालयों बीच एक हॉटलाइन स्थापित करने के लिए भी सहमत हुए. अभी तक उच्च पदस्थ सूत्रों ने बीजिंग और इस्लामाबाद के बीच किसी भी तरह के ’पैकेज डील’ से इनकार किया है.
भारत और पाकिस्तान ने दोनों देशों के बीच नरमी लाने में किसी भी अमेरिकी दबाव का जोरदार खंडन किया है, लेकिन हालांकि यह स्पष्ट है कि दोनों पक्ष व्हाइट हाउस में नए प्रशासन के साथ गलत कदम नहीं उठाना चाहते हैं. एक ओर जहां कश्मीर , मानवाधिकार समेत अन्य मुद्दों पर बाइडन प्रशासन की टिप्पणी भारत के लिए बेहतर नहीं है तो वहीं पाकिस्तान में बलूचिस्तान और अफगानिस्तान से सटी उसकी सीमा पर अस्थिरता को लेकर भी अमेरिकी रुख उसे परेशान कर सकता है.
बाइडन और शी के बीच हुई फोन कॉल
बाइडन-शी के बीच हुई फोन कॉल के कुछ ही घंटे पहले आने भारत-चीन के बीच डिसएंगेजमेंट का भी ऐलान दक्षिण एशिया में रणनीतिक जानकारों की निगाह में है. भारत-पाकिस्तान युद्ध विराम की घोषणा करने वाले पहले देशों में से एक यूएई था. सऊदी अरब अब तक शांत है. बाइडन प्रशासन जमाल खाशोगी की हत्या में सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान पर निशाना साधा है. हालांकि अमेरिका ने सीधे कोई प्रतिबंध लगाने की बात नहीं कही है.
बाइडन ईरानी परमाणु समझौते पर फिर से लौटना चाहते हैं. पिछले ट्रंप प्रशासन के दौरान अमेरिका इससे पीछे हट गया था. ऐसे में वाशिंगटन के लिए सऊदी अरब का रणनीतिक महत्व भी काफी गिर जाएगा. लेकिन भारत के लिए, सऊदी अभी भी नंबर एक तेल आपूर्तिकर्ता है. साथ ही प्रवासी भारतीयों की अधिकतम संख्या सऊदी अरब में काम करती है. भारत में पहले से ही 100 रुपये प्रति लीटर पेट्रोल बिक रहा है. ऐसे में ओपेक द्वारा सऊदी अरब के नेतृत्व में किसी भी प्रकार की आपूर्ति को कम कर सकता है जिससे भारत की डगर और कठिन हो जाएगी. अगले कुछ महीने काफी कठिन रह सकते हैं.