धड़ों में बंटे कांग्रेसियों को एकसूत्र में पिरोने में नाकाम रहने के बाद जयपुर पलायन कर गए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पुत्र वैभव सात दिन पश्चात एक बार फिर लौट आए है। आते ही उन्होंने चुनाव प्रचार करना भी शुरू कर दिया है। यह पहला अवसर है जब जोधपुर में किसी चुनाव से गहलोत ने दूरी बना रखी है। ऐसे में नगर निगम चुनाव के माध्यम से स्वयं को स्थापित करने का वैभव के पास बेहतरीन अवसर है। लेकिन वे स्वयं भी काफी विलम्ब से चुनावी रण में लौटे है। ऐसे में वे कितना सफल रह पाएंगे ये तो चुनाव नतीजे ही तय करेंगे।
मुख्यमंत्री गहलोत ने अपने गृह नगर की राजनीति में पूरी तरह से स्थापित करने के लिए वैभव को ही जिम्मेदारी सौंप दी और स्वयं इनसे दूर हो गए। पार्टी प्रत्याशी चयन के लिए जोधपुर आए वैभव ने नेताओं की गुटबाजी के आगे हथियार डाल दिए और जयपुर चले गए।
मुख्यमंत्री गहलोत और वैभव के इस तरह से चुनावी परिदृश्य से गायब होने के बाद कांग्रेस प्रत्याशी पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो गए। उन्हें इन दोनों की कमी बहुत अखरने लगी। ऐसे में करीब एक सप्ताह पश्चात वैभव वापस जोधपुर लौटे और आते ही उन्होंने पार्टी प्रत्याशियों के समर्थन में जनसंपर्क कर दर्शाने का प्रयास अवश्य किया कि वे सक्रिय है। लेकिन उनके काफी देर से मैदान में नजर आने से कांग्रेस को खामियाजा भी उठाना पड़ रहा है।
पिता की शैली में ही चुनाव प्रचार
जनसंपर्क के मामले में गहलोत बहुत माहिर माने जाते है। बरसों से जोधपुर की राजनीति में सक्रिय गहलोत की लोगों से जानपहचान भी काफी है। ऐसे में वे प्रचार के लिए निकलते समय सीधे लोगों से संवाद करते रहे है। उनकी इस शैली को लोग बेहद पसंद भी करते है। अब वैभव ने कल शाम जोधपुर पहुंच उसी शैली का अनुसरण करने का प्रयास किया। अब इसमें उन्हें कितनी सफलता मिलेगी ये तो नतीजों से ही पता चल पाएगा।
गहलोत की थी मंशा वैभव संभाले कमान
नगर निगम चुनाव से मुख्यमंत्री ने शुरू से ही स्वयं को दूर रख वैभव को आगे कर दिया, ताकि वे स्थानीय राजनीति के दावपेच सीख स्वयं को स्थापित कर सके। लेकिन टिकट वितरण को लेकर नेताओं में चली जोरदार खींचतान से वैभव खफा हो गए और जयपुर चले गए। उनके जाने के बाद कोई ऐसा नेता नहीं रहा जो पूरे जोधपुर में पार्टी के प्रचार की कमान संभाल सके।
गुटों में बंटे नेता अपने-अपने समर्थक प्रत्याशी के क्षेत्रों तक की सिमट कर रह गए। इस कारण पार्टी प्रत्याशियों को गहलोत की कमी बेहद अखर रही थी। गहलोत स्वयं तो नहीं आए लेकिन उन्होंने वैभव को वापस जोधपुर अवश्य भेज दिया। वैभव के फिर से कमान संभालने के बाद कार्यकर्ताओं में थोड़ा जोश अवश्य बढ़ा है।