सबसे पहले तो इस पर विचार करते हैं कि किसी को ग्लोबल इक्विटीज यानी वैश्विक शेयर (Global Stock Market) बाजार में निवेश क्यों करना चाहिए? वैश्विक स्तर पर देखें तो बहुत तरह के इनोवेशन हो रहे हैं जो कि हमारे दिन-प्रतिदिन के जीवन पर असर डाल रहे हैं, विभिन्न तरह के उद्योगों में बड़े बदलाव करने वाले है. इन सबका आपके निवेश पर असर होता है. मौजूदा समय की बात करें तो भारतीय शेयर बाजार में बहुत कम इनोवेटर लिस्टेड है. भारत भले ही पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हो, लेकिन हमारे यहां की बाजार पूंजी करीब 2.1 ट्रिलियन (लाख करोड़) डॉलर ही है, जबकि बाकी दुनिया की बाजार पूंजी 90 ट्रिलियन डॉलर के करीब है. तो आप यदि भारत से बाहर वैश्विक बाजारों में निवेश नहीं करते हैं, तो
वैश्विक शेयर बाजारों में निवेश भारतीय निवेशकों के लिए तुलनात्मक रूप से नई बात है. यह यात्रा लगभग उसी तरह से है जैसे निवेशक इक्विटी म्यूचुअल फंडों में निवेश करता है. अब हमारे देश में निवेशकों का ऐसा वर्ग है जिन्होंने कई चक्र में निवेश किया है और एक अवधारणा के रूप में म्यूचुअल फंडों के साथ सहज हैं. वे अब सामान्य संवाद से आगे बढ़ रहे हैं और अपने सलाहकारों से ऐसी रणनीतियों पर बात करने लगे हैं कि इक्विटी और डेट से भी आगे किस तरह से पोर्टफोलियो में विविधता लाई जाए.
एक एसेट वर्ग के रूप में किस तरह से करेंसी का फायदा उठाया जाए और ऐसे वैश्विक कारोबारों में कैसे हिस्सेदारी ली जाए जिनका भारतीय स्टॉक एक्सचेंजों में प्रतिनिधित्व नहीं है. अब ज्यादा लोग इस तथ्य को स्वीकार करने लगे हैं कि बाजारों में उतार-चढ़ाव का स्रोत दुनिया में कहीं से भी हो सकता है और आगे के लिए एकमात्र रास्ता यही है कि अपने पोर्टफोलियो का जितना संभव हो सके उतने एसेट वर्ग में विविधीकरण किया जाए. इसी वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निवेश का आकर्षण बढ़ रहा है.
आइए अब म्यूचुअल फंडों के द्वारा वैश्विक इक्विटीज यानी शेयरों में निवेश के नफा-नुकसान पर बात करते हैं.
निवेशकों के सामने दो विकल्प होते हैं.
1- सीधे वैश्विक इक्विटीज (विदेशी कंपनियों के शेयर्स में पैसा लगाना) में निवेश करना.
2-म्यूचुअल फंडों में निवेश करना.
सीधे वैश्विक शेयरों में निवेश करने के कई फायदे हैं जैसे निवेशक अपनी समझ, सुविधा और सूझबूझ के मुताबिक कुछ चुनिंदा शेयरों के पोर्टफोलियो पर अपना ध्यान केंद्रित रख सकता है (एक शेयर से लेकर 10 शेयरों तक). उसका इसमें पूरा नियंत्रण होता है और यह एक आसान विकल्प लग रहा है. लेकिन इसीलिए यह किसी मंझे हुए निवेशक ही लिए ही है जिसके पास पर्याप्त संसाधन और समय हो.
इसके अलावा, उसके पास ऐसी क्षमताएं होनी चाहिए कि वह ऐसी वैश्विक घटनाओं को पहचान सके और उन पर नजर रख सके जो उसके शेयरों पर असर डाल सकती हैं, ऐसे निवेशक के पास अनुपालन और नियामक मसलों से भी निपटने की क्षमता होनी चाहिए. उदाहरण के लिए इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) के शेड्यूल एफए में निवेशकों को अपने पास रहने वाले विदेशी एसेट का विस्तृत ब्योरा देना अनिवार्य होता है. इसी तरह, लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (LRS) के तहत प्रति व्यक्ति के सालाना 2.5 लाख डॉलर ही भेजने की सीमा तय है.
दूसरी तरफ, किसी म्यूचुअल फंड में निवेश करने (चाहे वह इंटरनेशनल फंड ऑफ फंड्स हो या फीडर फंड) के कई फायदे हैं
(1) इनके साथ घरेलू फंड जैसा ही बर्ताव होता हैः इन फंडों में निवेश को उसी तरह से देखा जाता है जैसा किसी घरेलू फंड में निवेश करना. इनके लिए कोई अतिरिक्त नियम-कायदा नहीं है, जैसा कि शेयरों में निवेश के मामले में होता है. अगर आसान शब्दों में कहें तो जैसे आप घरेलू कंपनियों के शेयरों में पैसा लगाते हैं. उसी तरह से विदेशी कंपनियों के शेयरों में पैसा लगा सकते है. इसके अलावा म्यूचूअल फंड्स के लिए भी और कोई नियम नहीं है.
(2) इन पर लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (LRS) लागू नहीं होता. आपको बता दें कि फाइनेंस एक्ट, 2020 (Finance Act 2020) के मुताबिक, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (LRS) के तहत विदेश पैसे भेजने वाले व्यक्ति को टीसीएस देना होगा.
कुछ नुकसान भी-म्यूचुअल फंडों के द्वारा निवेश के कई नुकसान भी हैं, जैसे-लागू एनएवी एक दिन बाद आता है, मुद्रा का जोखिम होता है, तीन साल से कम रखने पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स लग जाता है.
(3) इन म्युचूअल फंड्स का प्रबंधन विशेषज्ञों के द्वारा होता हैः इनका प्रबंधन पेशेवर फंड मैनेजर करते हैं जिनके पास शेयरों और पोर्टफोलियो की पहचान, विश्लेषण और उन पर निगरानी रखने की विशेषता, टेक्नोलॉजी और वैश्विक पहुंच होती है.
आमतौर पर म्यूचुअल फंडों में कई देशों और विभिन्न तरह के उद्योगों से जुड़े कई शेयर होते हैं (एक्टिव फंडों की बात करें तो यह संख्या 30 से 50 शेयरों की होती है), जिनके द्वारा भौगोलिक क्षेत्रों, सेक्टर और मुद्रा की विविधता हासिल होती है.
हालांकि, म्यूचुअल फंडों के द्वारा निवेश के कई नुकसान भी हैं, जैसे-लागू एनएवी एक दिन बाद आता है, मुद्रा का जोखिम होता है, तीन साल से कम रखने पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स लग जाता है.
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि छोटे निवेशकों के लिए म्यूचुअल फंडों के द्वारा वैश्विक शेयरों में निवेश करना, सीधे शेयरों में निवेश करने से बेहतर होता है. ज्यादा सलाहकार पहली बार इक्विटी में निवेश करने वाले निवेशकों को डायवर्सिफाइड इक्विटी फंड्स में निवेश करने की सलाह देते हैं. इनमें उन फंडों को पहला विकल्प रखना चाहिए जो कि दुनिया भर में निवेश करते हैं.
इसी तरह समझदार हाई नेटवर्थ वाले यानी बड़े निवेशक, जिनके पास पर्याप्त संसाधन हैं और जो सभी तरह की रिपोर्टिंग और रिसर्च को हासिल कर सकते हैं, वे रुपये के प्रभुत्व वाले ग्लोबल फंडों के साथ ही सीधे शेयरों में निवेश कर सकते हैं या अन्य इक्विटी विकल्पों में जो LRS के मुताबिक उनके लिए उपलब्ध हो