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भारतीय नेवी कैसे रखती है जहाज़ों और सबमरीन के नाम?

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बंगाल की खाड़ी (Bay of Bengal) में वर्चस्व की लड़ाई में अपनी साख बचाने के लिए भारतीय नौसेना (Indian Navy) को कूटनीतिक जंग लड़ना पड़ रही है और जहाज़ों के सौदे व समझौते करना पड़ रहे हैं. इस सिलसिले में आईएनएस सिंधुवीर की चर्चा हो रही है तो एक दिलचस्प सवाल उठता है कि भारत में जहाज़ों और पनडुब्बियों (Indian Ships & Submarines) यानी सबमरीन के नाम किस तरह रखे जाते हैं? आईएनएस चक्र, विक्रांत और आईएनएस विराट (INS Viraat) जैसे नामों से आप पूरी तरह वाकिफ हैं, लेकिन क्या आपको इनके नामकरण के पीछे की पूरी कवायद के बारे में जानकारी है?

पिछले डेढ़ महीने में भारत करीब एक दर्जन मिसाइलों के

परीक्षण के साथ ही अपने जंगी हथियारों के टेस्ट कर चुका है. इसमें नौसेना से जुड़े अस्त्र शस्त्र भी शामिल रहे. बहरहाल, यहां आपको उस व्यवस्था और तौर तरीकों के बारे में बताते हैं, जिनसे भारतीय नौसेना अपने जहाज़ों के यादगार नाम रखती है.

कैसे तय होते हैं नाम?
क्या आप जानते हैं कि अमेरिका में बैलेस्टिक मिसाइल सबमरीनों के नाम ज़्यादातर अमेरिकी राज्यों के नाम पर रखे जाते हैं? इसी तरह, ब्रिटेन और फ्रांस में भी नेवी के अपने तरीके हैं. भारत में जहाज़ों और सबमरीनों के नाम रखने के लिए बाकायदा एक संस्था है, आंतरिक नामकरण कमेटी (INC) जो देश के रक्षा मंत्रालय के तहत काम करती है.

नौसेना के असिस्टेंट चीफ को इस कमेटी का प्रमुख बनाया जाता रहा. इसके अलावा इस कमेटी में रक्षा मंत्रालय के इतिहास सेक्शन के प्रतिनिधियों समेत, सतही परिवहन मंत्रालय, मानव संसाधन विकास और पुरातत्व विभाग के सदस्य भी होते हैं. नीतिगत निर्देशों के बाद जिन नामों की सिफारिश की जाती है, उसे नौसेना प्रमुख मंज़ूर करते हैं. जंगी जहाज़ों के मोटो और क्रेस्ट के लिए राष्ट्रपति तक की सहमति ली जाती है.

एक लय और एकरूपता का कॉंसेप्ट
शिप्स और सबमरीनों के नाम तय करते वक्त यह ध्यान रखा जाता है कि एक श्रेणी या एक टाइप के पोतों के नाम एक ही थीम पर हों. उदाहरण के लिए क्रूज़र या डिस्ट्रॉयर के नाम राज्यों की राजधानी, बड़े शहर या देश के इतिहास के महान योद्धाओं के नाम पर रखे जाते हैं जैसे INS दिल्ली, INS चेन्नई, INS कोलकाता, INS मैसूर, INS राणा और INS रंजीत आदि.

एक ही अक्षर से नाम, क्या कोई ज्योतिष भी है?
हो सकता है कि INS सह्याद्रि, INS शिवालिक, INS सतपुड़ा जैसे नामों से यह भ्रम हो कि एक वर्ग के जहाज़ों के कई नाम एक ही अक्षर से शुरू होते हैं, तो इसके पीछे कोई ज्योतिषीय या ‘शुभ अक्षर’ का कोई कॉंसेप्ट हो. एक रिपोर्ट के मुताबिक युद्ध पोतों के नाम पहाड़ों, नदियों या हथियारों के नाम पर रखने की परंपरा है और ध्यान रखा जाता है कि इसी श्रेणी के शिप के नामों का पहला अक्षर समान रहे.

उदाहरण के तौर पर INS तलवार, INS तेग के साथ INS ब्रह्मपुत्र, INS गंगा इस श्रेणी के नाम हैं. इनके अलावा लड़ाकू जलयानों के नाम निजी हथियारों के नाम पर रखे जाते हैं जैसे INS खुखरी, INS कृपाण या INS खंजर इस श्रेणी के नाम हैं. इसी तरह, मल्टी परपज़ पेट्रोलिंग के काम आने वाले जहाज़ों के नाम द्वीपों के नाम पर रखे जाते रहे हैं जैसे INS कालापानी, INS कार निकोबार या INS करूवा.

शिप और सबमरीन के नामों में अंतर
एंटी सबमरीन जंगी जहाज़ों के रोल के हिसाब से, इनके नामों में आक्रामकता के प्रतीक होते हैं, जैसे INS कामोर्टा या INS कदमट्ट. अब चूंकि पनडुब्बियां पानी के अंदर अपना काम ज़्यादा करती हैं इसलिए इनके लिए हिंसक मछलियों या फिर समुद्र से जुड़े कुछ अमूर्त नाम चुने जाते हैं, जैसे INS शल्कि और INS शंकुल हों या INS सिंधुकीर्ति और सिंधुघोष पारंपरिक सबमरीन हैं, तो INS अरिहंत और INS चक्र न्यूक्लियर सबमरीन.

क्या है प्रासंगिकता?
इस रोचक जानकारी के बाद यह भी जानना चाहिए कि INS सिंधुवीर क्यों चर्चा में है? हाल में भारत ने म्यांमार को सिंधुवीर नाम की किलो क्लास सबमरीन दी है. शॉर्टेज के बावजूद भारत का म्यांमार को सबमरीन देना एक कूटनीतिक कदम माना जा रहा है. वजह यह है कि म्यांमार में कई बागी संगठन अपने बेस बना रहे हैं और भारत के साथ मिलकर इनके खिलाफ म्यांमार कदम उठा रहा है. दूसरी तरफ, म्यांमार में चीन का सहयोग और प्रभाव भी बढ़ रहा है, जिसे खत्म करना भारत के लिए ज़रूरी है.

इससे पहले, 2017 में भी भारत ने म्यांमार नेवी को टॉर्पीडो मदद के ​तौर पर दिए थे और पेमेंट के लिए भारी छूट भी दी थी. अब माना जा रहा है कि चीन के इस क्षेत्र में बढ़ते दबदबे से न केवल भारत को बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर में मुश्किल होगी बल्कि उत्तर पूर्वी राज्यों में भी. चीन के इस आक्रामक रवैये के चलते म्यांमार की मदद करना भारत की मजबूरी भी बनी हुई है वरना मदद करके चीन यहां वर्चस्व हासिल कर सकता है.