US President Election : अमेरिका में भारतीय मूल के लोग (Americans of Indian Origin) पावर सेंटर बनकर उभरे हैं. इन्हें साधना अमेरिकी राजनीति (US Politics) की ज़रूरत है तो दूसरी तरफ इनके वोट अक्सर थोक में जाते हैं. इस बार कमला हैरिस (Kamala Harris) के कारण भारतवंशी खासी चर्चा में हैं.
चेन्नई (Chennai) से ताल्लुक रखने वाली बायोलॉजिस्ट श्यामला गोपालन (Shyamla Gopalan) और जमैका से ताल्लुक रखने वाले अर्थशास्त्री डोनाल्ड हैरिस (Donald Harris) की बेटी कमला हैरिस को जो बाइडेन (Joe Biden) ने जबसे अपने साथ उम्मीदवार बनाया है, तबसे अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव (President Election) में भारतीय अमेरिकी समुदाय चर्चा में है. खुद हैरिस ने भी कह दिया अमेरिका की राजनीति में यह भारतीय अमेरिकियों के उभरने का समय है. अमेरिका की राजनीति के आईने भारतीय मूल के अमेरिकियों का अक्स क्या मायने रखता है?
ब्लैक चर्च के साथ ही भारतीय और हिंदू संस्कारों के साथपरवरिश पाने वाली कमला हैरिस अपनी जड़ों यानी भारत से जुड़ी रही हैं.कमला हैरिस के भारत से गहरे ताल्लुक संबंधी कहानियां आपको बता चुका है. अब आपको बताते हैं कि सीनेटर हैरिस के बहाने अमेरिका की मौजूदा राजनीति में न सिर्फ बाइडेन बल्कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के लिए भी भारतीय अमेरिकी समुदाय कितना महत्वपूर्ण हो गया है.
अमेरिका की कुल आबादी में भारतीय मूल के अमेरिकी सिर्फ 1.5% हैं, फिर भी अमेरिकी राजनीति में उनका जो दखल है, वह दूर से अनुपात से कहीं ज़्यादा दिखता है. लेकिन, बारीकी से देखने पर पता चलता है कि अमेरिका में बाहरी देशों और संस्कृतियों के जितने समुदाय हैं, उन सबमें भारतीय मूल के समुदाय के लोग सबसे संपन्न हैं यानी एक तरह के पावर सेंटर है. आइए जानते हैं कि इस पावर सेंटर के वोटों का क्या मतलब है.
अमेरिकी राजनीति में भारतीयों का दखल
मेक्सिकन के बाद अमेरिका में भारतीय मूल के लोग प्रवासियों का सबसे बड़ा समूह हैं. 1965 में अमेरिकी कानून के मुताबिक जब इमिग्रेशन के लिए राष्ट्रीयता के आधार को समाप्त कर दिया गया और स्किल के आधार पर लोगों को नागरिकता देने के बारे में नियम बने, तबसे नाटकीय तौर से एशियाई लोगों का अमेरिका में बढ़ना शुरू हुआ. अब भारतीय मूल के अमेरिकियों की आबादी 40 लाख से ज़्यादा है.
अमेरिकी कांग्रेस में भारतीयों की मौजूदगी
साल 1957 में पहली बार किसी भारतीय ही नहीं बल्कि एशियाई मूल के अमेरिकी ने हाउस ऑफ रिप्रेज़ेंटेटिव में जगह बनाई थी. भारतीय मूल के दलीप सिंह सौंद दक्षिण कैलिफोर्निया से और दो बार चुने गए थे. इसके बाद 2005 में बॉबी जिंदल दूसरे भारतीय अमेरिकी बने जो हाउस ऑफ रिप्रेज़ेंटेटिव में पहुंचे. 2011 में प्रमिला जयपाल यह उपलब्धि पाने वाली पहली भारतीय अमेरिकी महिला बनीं. वर्तमान में कमला हैरिस समेत पांच भारतीय अमेरिकी कांग्रेस में हैं.
क्यों राजनीति में है अहमियत?
सबसे ज़्यादा शिक्षित होने के साथ ही सबसे संपन्न माइग्रेंट समुदाय होने के कारण अमेरिका के चुनावी अभियानों में अच्छे खासे फंड भारतीय अमेरिकियों के ज़रिये ही आते हैं. मौजूदा राष्ट्रपति चुनाव में भी यह समुदाय प्रमुख दानदाता के रूप में उभरा है. अब आपको कोई हैरानी नहीं होगी कि क्यों रिपब्लिकन ट्रंप और डेमोक्रेट बाइडेन दोनों ही इस समुदाय के साथ बेहतर रिश्ते रखने के पक्ष में दिखे हैं.
यह पहली बार नहीं है. इससे पहले भी अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में व्हाइट हाउस के उम्मीदवार भारतीय अमेरिकियों को लुभाते रहे हैं. रोनाल्ड रीगन की ‘बिग टेंट’ नीति को अब भी याद किया जाता है. यह भी गौरतलब है कि बॉबी जिंदल की बात रही हो या निकी हैली की,
अमेरिका की प्रमुख पार्टियां बड़े पदों तक पहुंचने वाले भारतीयों को काफी तरजीह देती रही हैं.ये भी एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि बड़े पदों पर पहुंचने वाले भारतीय अमेरिकी अपने धर्म को लेकर कट्टर नहीं रहे हैं. बॉबी और निकी जैसे कई अहम लोगों ने ईसाई धर्म तक स्वीकार किया है और वो अमेरिका को ही अपने पहले घर के रूप में तरजीह देते रहे हैं, बजाय भारतीय जड़ों को हर मंच पर सींचने के.
कैसे वोट करते हैं भारतीय अमेरिकी?
क्या ये थोक में वोट करते हैं? क्या ये किसी एक ही पार्टी की तरफ झुकाव रखते हैं? इन सवालों के जवाब थोड़े मुश्किल इसलिए हैं क्योंकि लाखों की आबादी में इसे एकदम से समझना मुश्किल होता ही है. फिर भी कुछ ट्रेंड बताते हैं कि एक बड़ा वर्ग है जो रिपब्लिकन पार्टी को वोट करने की टेंडेंसी रखता है. इस साल फरवरी में ट्रंप की भारत यात्रा के दौरान बड़ा जनसमूह स्वागत के लिए उमड़ा, लेकिन यह कार्यक्रम वोट में कितना कन्वर्ट होगा, इस पर कई तरह की खबरें बनी हुई हैं.लेकिन, रिपब्लिकन पार्टी की नस्लवादी सोच भी हमेशा इस समुदाय में रही है. 2006 में एक रिपब्लिकन उम्मीदवार जॉर्ज एलन ने भारतीय अमेरिकी को ‘बंदर’ तक कहकर दुश्मन बताया था. तब इस बात पर बड़ा हंगामा हुआ था और इस तरह की यादें बनी रहती हैं.
डेमोक्रेट पार्टी की तरफ भारतीय अमेरिकियों की मैजोरिटी झुकाव रखती है. 2012 में प्यू सर्वे में बताया गया था कि 65% भारतीय अमेरिकी या तो डेमोक्रेट हैं, या इस तरफ रुझान रखते हैं. इस साल भी, राजनीतिक विशेषज्ञ कार्तिक रामकृष्णन ने एक सर्वे के नतीजे के तौर पर बताया कि 54% भारतीय अमेरिकी डेमोक्रेट उम्मीदवार यानी बाइडेन की तरफ झुकाव रखते हैं जबकि 29% रिपब्लिकन उम्मीदवार यानी ट्रंप के प्रति.
बहरहाल, नीतियों के स्तर पर देखा जाए तो पिछले कुछ दशकों में डेमोक्रेटिक पार्टी ने इमिग्रेशन और अल्पसंख्यकों को लेकर ज़्यादा संवेदनशीलता दिखाई है. इसी का दूसरा पहलू है कि भारतीय अमेरिकी उदारवाद को ही पसंद करते हैं. ये भी एक याद रखने की बात है कि 84% भारतीय अमेरिकियों ने ओबामा के पक्ष में वोटिंग की थी. यानी इस बार अमेरिका के चुनाव में भी भारतीय अमेरिकियों के वोटों पर हर पार्टी की नज़र रहेगी.