संसद का मानसून सत्र (Monsoon season of Parliament) इस बार देरी से शुरू हो रहा है. ये 14 सितंबर से शुरू होगा और 01 अक्टूबर तक चलेगा. इस बार कोरोना वायरस के कहर के चलते सरकार ने मानसून सत्र में कुछ बदलाव किए हैं. इसमें समय से लेकर कुछ और बातें भी हैं. लेकिन सबसे बड़ी बात ये है कि सरकार ने इस बार सत्र के दौरान रोजाना रहने वाले प्रश्नकाल (Question Hour) को खत्म कर दिया है. इसे लेकर विपक्ष नाराज है.
इस बार जब मानसून सत्र शुरू होगा तो उसमें प्रश्नकाल नहीं होगा. इसे विपक्षी सदस्यों का एक मजबूत हथियार भी माना जाता है और विभिन्न विषयों पर सरकार से जानकारी हासिल करने का एक साधन भी. लोकतंत्रिक प्रणाली में प्रश्नकाल को हमेशा से जरूरी ठहराया जाता रहा है.
प्रश्न काल.को क्वेश्चर ऑवर भी कहते हैं. 1950 के बाद संसद में सत्र के दौरान पहली बार इसे खत्म किया जा रहा है. प्रश्नकाल को विपक्ष का एक बडा़ शस्त्र माना जाता रहा है और आम जनता के लिए ये अहम होता रहा है, क्योंकि इसके जरिए सरकार के कामकाज की बहुत सी जानकारियां भी सामने आती हैं. कुल मिलाकर संसद में प्रश्नकाल को लोकतंत्र का बड़ा औजार माना जाता रहा है.
संसद के दोनों सदनों में सत्र के दौरान प्रश्नकाल शुरुआती समय में ही एक घंटे का होता है. इसमें सत्तापक्ष से सवाल किए जाते हैं और संबंधित विभाग के मंत्री उनके मौखिक या लिखित जवाब देते हैं. इसे प्रश्नकाल कहा जाता है.
रश्नकाल के दौरान अतिरिक्त, खोजी और अनुपूरक प्रश्न भी पूछे जाते हैं, इससे मंत्रियों की क्षमता का भी पता चलता है कि वो अपने विभाग के कामकाज को कितना समझते हैं
प्रश्नकाल के दौरान अक्सर सवालों पर होने वाले तर्क-वितर्क से संसद में कटु माहौल भी बनता है. कुछ प्रश्नों का मौखिक उत्तर दिया जाता है. इन्हें तारांकित प्रश्न कहा जाता है. अतारांकित प्रश्नों का लिखित उत्तर दिया जाता है. ये संसदीय प्रक्रिया हमेशा से सांसदों में लोकप्रिय रही है. क्योंकि इससे वो अपनी मनचाही जानकारी हासिल कर सकते हैं.
सूचना के अधिकार कानून के लागू होने से पहले यह सरकार से जानकारी निकलवाने का एकमात्र साधन हुआ करता था. अमूमन सांसदों को सवाल का नोटिस 15 दिन पहले देना पड़ता है, ताकि संबंधित विभाग सवाल से जुड़ी पूरी जानकारी इकट्ठा करके प्रस्तुत कर सके.
सांसद प्रश्न काल के दौरान पूरक प्रश्न भी पूछते हैं. उनके जवाब अगर मंत्री के पास नहीं हुए तो वो बाद में जवाब पता करके सवाल पूछने वाले सांसद को बताने का आश्वासन देता है. आश्वासन पूरा ना होने पर सांसद मंत्री की शिकायत भी कर सकते हैं. प्रश्न पूछने का मूल उद्देश्य लोक महत्व के किसी मामले पर जानकारी प्राप्त करना और तथ्य जानना है.
सांसद भी प्रश्न काल को बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं और शायद इसीलिए इस सत्र से प्रश्न काल को पूरी तरह से हटा देने के निर्णय का विपक्ष के सांसद विरोध कर रहे हैं. तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओब्रायन ने ट्वीट कर कहा कि महामारी को लोकतंत्र की हत्या करने का बहाना बनाया जा रहा है.
प्रश्नकाल के साथ सरकार ने जिस काल में बदलाव किया है. वो शून्यकाल है. इसे एक घंटे से घटा कर आधा घंटा कर दिया गया है. शून्य काल में सांसदों को जनहित के विषयों को उठाने का और उनकी तरफ सरकार का ध्यान खींचने का मौका मिलता है. हालांकि ये एक घंटे का समय भी हमेशा कम पड़ जाता है. आमतौर पर विपक्ष के सांसद ये कहते मिल जाते हैं कि शून्यकाल का समय बढ़ाया जाना चाहिए.