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तो क्‍या एक राज्‍यसभा सीट पर नामांकन बना कांग्रेस में उथलपुथल का कारण…

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कर्नाटक की चार राज्यसभा (Rajya Sabha) सीटों पर इस साल की शुरुआत में हुए चुनाव में कांग्रेस (Congress) को सिर्फ एक सीट हासिल करने का आश्वासन दिया गया था. सियासी हलकों में यह उम्मीद की जा रही थी कि राहुल गांधी के वफादार और मौजूदा सांसद राजीव गौड़ा को फिर से नामांकन मिलेगा, लेकिन इसके बजाय IIM के पूर्व प्रोफेसर गौड़ा को 9 बार लोकसभा सांसद रहे मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए रास्ता बनाने को कहा गया. खड़गे ने 2014 और 2019 के बीच लोकसभा में कांग्रेस का नेतृत्व किया था. वह कर्नाटक में हैदराबाद के गुलबर्गा से पिछला चुनाव हार गए थे.

पूर्व केंद्रीय मंत्री और उच्च सदन में परिवार के एक वफादार की एंट्री ने कांग्रेस में कई की भौहें चढ़ा दीं. 2014 के चुनावी बिगुल के बाद कांग्रेस ने संसद के लिए दलित-मुस्लिम संयोजन को चुना. ये थे लोकसभा में मल्लिकार्जुन खड़गे और राज्यसभा में गुलाम नबी आजाद. खड़गे सदन में मोदी सरकार को चुनौती देने में बहुत मुखर थे. उन्होंने प्रमुख संवैधानिक पदों के लिए नियुक्ति समितियों में अपनी आपत्तियां दर्ज कराईं, जिसमें वे सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता के रूप में मौजूद थे. सदन में मुख्य विपक्षी पार्टी के लिए निर्धारित संख्याबल से कम होने के कारण खड़गे को विपक्ष के नेता के रूप में मान्यता नहीं दी गई. वहीं इसके बाद 2019 में अधीर रंजन चौधरी को निचले सदन में पार्टी का नेता घोषित किया गया.

इस पद के प्रमुख दावेदारों में से दो पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी और शशि थरूर थे. दोनों ने ही 23 नेताओं द्वारा सोनिया गांधी को भेजे गए फेरबदल संबंधी पत्र में हस्‍ताक्षर भी किए थे. 23 लोगों में यही दोनों मौजूदा लोकसभा सदस्‍य हैं. हालांकि राज्‍यसभा की यह कहानी अधिक दिलचस्प है. खड़गे के नामांकन में उच्च सदन में पेकिंग ऑर्डर को बाधित करने की क्षमता थी. विपक्ष के मौजूदा नेता गुलाम नबी आजाद का कार्यकाल फरवरी में समाप्त हो रहा है. वहीं खड़गे उच्च सदन में दाखिल होने के साथ राज्‍यसभा में पार्टी नेता के लिए संभावित उम्मीदवार बन गए. उन्होंने 5 वर्षों तक लोकसभा में कमजोर कांग्रेस का नेतृत्व किया था. वह मनमोहन सिंह और एके एंटनी के साथ आगे की पंक्ति में किसी भी सीट पर बैठेंगे.

वहीं सोनिया गांधी को लिखे पत्र में मुकुल वासनिक के हस्ताक्षर ने भी कई लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया. वह गांधी परिवार के वफादार माने जाते रहे हैं. इस साल की शुरुआत में राज्‍यसभा के लिए महाराष्ट्र से उच्च सदन में कांग्रेस का नामांकन राहुल गांधी के वफादार राजीव सातव के पाले में गया.
यह शायद ही आश्चर्य की बात है कि उच्च सदन में अशांति की चिंगारी इतनी व्यापक थी. कई लोग पिछले 6 महीनों में प्रमुख संगठनात्मक नियुक्तियों ने राहुल गांधी को और मजबूती दी. इस महीने की शुरुआत में सोनिया गांधी के साथ राज्‍यसभा सांसदों की बैठक ने विवाद को हवा दी. फिर पत्र को सोमवार सीडब्‍ल्‍यूसी की बैठक से सिर्फ 24 घंटे पहले सार्वजनिक कर दिया गया.